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पिथौरा : भागवत कथा में साद्ध्वी राधिका किशोरी ने सुनाया श्रीकृष्ण-रुक्मणी विवाह प्रसंग, साथ में कृष्ण को क्यों प्यारी है बांसुरी और माखन मिसरी तथा इनके जीवन में क्या महत्व है !

 


रूपानंद स्वांई  94242 - 43631 

पिथौरा(झोल्टूराम)। राजासेवैया खुर्द में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन कथा वाचिका साध्वी राधिका किशोरी ने उधव चरित्र, महारासलीला व रुक्मिणी विवाह का वर्णन किया। कथा वाचिका साध्वी राधिका किशोरी ने कहा कि गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण से उन्हें पति रूप में पाने की इच्छा प्रकट की। भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों की इस कामना को पूरी करने का वचन दिया।


अपने वचन को पूरा करने के लिए भगवान ने महारास का आयोजन किया। इसके लिए शरद पूर्णिमा की रात को यमुना तट पर गोपियों को मिलने के लिए कहा गया। सभी गोपियां सज-धजकर नियत समय पर यमुना तट पर पहुंच गईं। कृष्ण की बांसुरी की धुन सुनकर सभी गोपियां अपनी सुध-बुध खोकर कृष्ण के पास पहुंच गईं। उन सभी गोपियों के मन में कृष्ण के नजदीक जाने, उनसे प्रेम करने का भाव तो जागा, लेकिन यह पूरी तरह वासना रहित था। इसके बाद भगवान ने रास आरंभ किया। माना जाता है कि वृंदावन स्थित निधिवन ही वह स्थान है, जहां श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। यहां भगवान ने एक अद्भुत लीला दिखाई थी, जितनी गोपियां उतने ही श्रीकृष्ण के प्रतिरूप प्रकट हो गए। सभी गोपियों को उनका कृष्ण मिल गया और दिव्य नृत्य व प्रेमानंद शुरू हुआ। रुक्मिणी विवाह का वर्णन करते हुऐ कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने सभी राजाओं को हराकर विदर्भ की राजकुमारी रुक्मिणी को द्वारका में लाकर उनका विधिपूर्वक पाणिग्रहण किया।


मौके पर कथा आयोजक की ओर से आकर्षक वेश-भूषा में श्रीकृष्ण व रुक्मिणी विवाह की झांकी प्रस्तुत कर विवाह संस्कार की रस्मों को पूरा करते हूए हल्दी का कार्याक्रम भी किया गया। कथा के साथ-साथ भजन संगीत पर श्रद्धालूगण बाराती बनकर जमकर नाचे ।




साध्वी राधिका किशोरी ने बताया कृष्ण को क्यों प्यारी है बांसुरी और माखन मिसरी तथा इनके जीवन में क्या महत्व है 




बांसुरी से सीखें मीठा बोलना
बांसुरी भगवान श्री कृष्ण को अति प्रिय है, क्योंकि बांसुरी में तीन गुण है। पहला बांसुरी मं गांठ नहीं है। जो संकेत देता है कि अपने अंदर किसी भी प्रकार की गांठ मत रखों। मन में बदले की भावना मत रखो। दूसरा बिना बजाये ये बजती नहीं है। मानो बता रही है कि जब तक ना कहा जाए तब तक मत बोलो। और तीसरा जब भी बजती है मधुर ही बजती है। जिसका अर्थ हुआ जब भी बोलो, मीठा ही बोलो। जब ऐसे गुण किसी में भगवान देखते हैं, तो उसे उठाकर अपने होंठों से लगा लेते हैं।



इसलिए कृष्ण को प्यारी है गाय
भगवान श्रीकृष्ण को गौ अत्यंत प्रिय है। दरअसल, गौ सब कार्यों में उदार तथा समस्त गुणों की खान है। गौ का मूत्र, गोबर, दूध, दही और घी, इन्हे पंचगव्य कहते हैं। मान्यता है कि इनका पान कर लेने से शरीर के भीतर पाप नहीं ठहरता। जो गौ की एक बार प्रदक्षिणा करके उसे प्रणाम करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर अक्षय स्वर्ग का सुख भोगता है।



मोर से ब्रह्मचर्य की शिक्षा
मोर को चिर-ब्रह्मचर्य युक्त प्राणी समझा जाता है। अतः प्रेम में ब्रह्मचर्य की महान भावना को समाहित करने के प्रतीक रूप में कृष्ण मोर पंख धारण करते हैं। मोर मुकुट का गहरा रंग दुःख और कठिनाइयों, हल्का रंग सुख-शांति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।



कमल की तरह रहें पवित्र
कमल कीचड़ में उगता है और उससे ही पोषण लेता है, लेकिन हमेशा कीचड़ से अलग ही रहता है। इसलिए कमल पवित्रता का प्रतीक है। इसकी सुंदरता और सुगंध सभी का मन मोहने वाली होती है। साथ ही कमल यह संदेश देता है कि हमें कैसे जीना चाहिए? सांसारिक और आध्यात्मिक जीवन किस प्रकार जिया जाए इसका सरल तरीका बताता है कमल। 



मिसरी से सीखें घुल मिल जाना
कान्हा को माखन मिसरी बहुत ही प्रिय है। मिसरी का एक महत्वपूर्ण गुण यह है कि जब इसे माखन में मिलाया जाता है, तो उसकी मिठास माखन के कण-कण में घुल जाती है। उसके प्रत्येक हिस्से में मिसरी की मिठास समा जाती है। मिसरी युक्त माखन जीवन और व्यवहार में प्रेम को अपनाने का संदेश देता है। यह बताता है कि प्रेम में किसी प्रकार से घुल मिल जाना चाहिए।


गले में वैजयंती माला
भगवान के गले में वैजयंती माला है, जो कमल के बीजों से बनी हैं। दरअसल, कमल के बीज सख्त होते हैं। कभी टूटते नहीं, सड़ते नहीं, हमेशा चमकदार बने रहते हैं। इसका तात्पर्य है, जब तक जीवन है, तब तक ऐसे रहो जिससे तुम्हें देखकर कोई दुखी न हो। दूसरा यह माला बीज है, जिसकी मंजिल होती है भूमि। भगवान कहते हैं जमीन से जुड़े रहो, कितने भी बड़े क्यों न बन जाओ। हमेशा अपने अस्तित्व की असलियत के नजदीक रहो।


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