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पत्रकारो के खिलाफ हिंसा रोकने हेतु ‘छत्तीसगढ़ मीडियाकर्मी सुरक्षा विधेयक’ सर्वसम्मति से पारित



छत्तीसगढ़ मीडियाकर्मी सुरक्षा विधेयक  सर्वसम्मति से पारित

(News Credit by Ibc24) 
रायपुर :  छत्तीसगढ़ विधानसभा में बुधवार को ‘छत्तीसगढ़ मीडियाकर्मी सुरक्षा विधेयक’ सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पास जनसंपर्क विभाग भी है। उन्होंने विधानसभा में बुधवार को ‘छत्तीसगढ़ मीडियाकर्मी सुरक्षा विधेयक, 2023’ पेश किया और विधेयक पारित होने के बाद इसे ‘‘ऐतिहासिक’’ करार दिया।

विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायकों ने विधेयक को विधानसभा की प्रवर समिति के पास जांच के लिए भेजने की मांग की थी जिसे विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत ने खारिज कर दिया।

कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले अपने चुनावी घोषणा पत्र में राज्य में पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक कानून लाने का वादा किया था।

मुख्यमंत्री ने सदन में कहा कि विधेयक का उद्देश्य छत्तीसगढ़ में काम कर रहे मीडियाकर्मियों के खिलाफ हिंसा को रोकना और मीडियाकर्मियों और मीडिया संस्थानों की संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।

उन्होंने कहा कि हिंसक कृत्य से मीडियाकर्मियों को जान का खतरा या मीडियाकर्मियों या मीडिया संस्थानों की संपत्ति को नुकसान और क्षति होने का खतरा रहता है जिससे राज्य में अशांति पैदा हो सकती है।


बघेल ने सदन में कहा, ‘‘कई बार कानून लागू करने की मांग की गई और इस संबंध में 2019 में उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश आफताब आलम की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। यह कानून सभी (संबंधित पक्षों) के परामर्श से तैयार किया गया है। यह दिन सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा और यह एक ऐतिहासिक दिन है।’’

विपक्ष के नेता नारायण चंदेल और अजय चंद्राकर सहित भाजपा विधायकों ने पूछा कि क्या राज्य सरकार ने क्या एडिटर्स गिल्ड, भारतीय प्रेस परिषद या राज्य में प्रेस क्लबों से परामर्श किया है और कहा कि विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिए गठित समिति द्वारा की गई सिफारिश को विधानसभा में पेश किया जाना चाहिए था।’’

जब विपक्ष के सदस्यों ने इसे प्रवर समिति के पास भेजने की मांग की तब सत्ताधारी दल कांग्रेस ने कहा कि भाजपा पत्रकारों के हितों के खिलाफ है और विधेयक को रोकने की कोशिश कर रही है। वहीं विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत ने विपक्ष की मांग को खारिज कर दिया।

बाद में, भाजपा विधायकों ने कहा कि वे कानून को अपना समर्थन देते हैं, लेकिन चर्चा में हिस्सा नहीं लेंगे।

विधेयक के अनुसार विधेयक का विस्तार पूरे छत्तीसगढ़ में होगा। विधेयक के अनुसार मीडिया संस्थान में कार्यरत संपादक, लेखक, समाचार संपादक, उपसंपादक, रूपक लेखक, प्रतिलिपि संपादक, संवाददाता, व्यंग चित्रकार, समाचार फोटोग्राफर, वीडियो पत्रकार, अनुवादक, शिक्षु/प्रशिक्षु मीडियाकर्मी, समाचार संकलनकर्ता और स्वतंत्र पत्रकार जिसे शासन द्वारा अधिमान्यता मिला हो मीडियाकर्मी माना गया है।

विधेयक के अनुसार छत्तीसगढ़ में निवास कर रहे और पत्रकारिता कर रहे मीडियाकर्मियों का पंजीकरण होगा। इसके अनुसार, एक व्यक्ति जिसने पिछले तीन महीनों में मीडिया संस्थान में लेखक या सह-लेखक के रूप में छह लेख या समाचार प्रकाशित किए हैं या एक व्यक्ति जिसने पिछले छह महीनों में समाचार संकलन के लिए मीडिया संगठनों से न्यूनतम तीन भुगतान प्राप्त किए हैं, वह पंजीकरण के लिए पात्र होगा। मीडियाकर्मियों की सुरक्षा के लिए गठित एक समिति पंजीकरण प्राधिकरण का कार्य करेगा।

विधेयक के अनुसार अधिनियम के शासकीय राजपत्र में अधिसूचना के प्रकाशन के 90 दिनों के भीतर शासन मीडियाकर्मियों की सुरक्षा के लिए एक समिति का गठन करेगा जो मीडियाकर्मियों जिन्हें सुरक्षा की आवश्यकता है की प्रताड़ना, धमकी या हिंसा या गलत तरीके से अभियोग लगाने और उनको गिरफ्तार करने संबंधी शिकायतों का निराकरण करेगी। यह समिति छत्तीसगढ़ मीडिया स्वतंत्रता संरक्षण एवं संवर्धन समिति के नाम से जानी जाएगी।

विधेयक में कहा गया है कि समिति का कार्यकाल तीन वर्ष का होगा और कोई भी मनोनीत सदस्य इस समिति में निरंतर एक से अधिक अवधि के लिए मनोनित नहीं किया जा सकेगा।

विधेयक में कहा गया है कि यदि किसी मीडियाकर्मी के खिलाफ आरोप या जांच हो रही है या पूर्व में जांच हुई है तब समिति संबंधित जिला पुलिस अधीक्षक से 15 दिनों के भीतर जांच प्रतिवेदन सौंपने का निर्देश दे सकती है।

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