Ad Code

Responsive Advertisement

Chhattisgarh : 2023 विधान सभा चूनाव, भाजपा से 40 फीसदी तक नए चेहरों को टिकट दिया जाएगा, कौन हो सकते हैं वो नये चेहरे !

 


(News Credit by ibc24)

भाजपा को काम आएगा नए चेहरों पर दांव, 
बशर्ते 2018 में जिन्होंने इस लाचारी तक पहुंचाया उनकी पहचान तो कीजिए

इस नए को अपने लिए मुफीद मानने वाले राजनीतिक नौजवानों में जील फील हो रहा है। लेकिन जो वर्तमान में विधायक हैं या जो कम मार्जिन से हारे थे या जो 2018 में पहली बार लड़े थे और उम्मीद थी कि एक हार माफ मानकर फिर ताल ठोकेंगे, वे सब के सब अब आशंकाओं से घिर गए हैं।

BJP can cut 40 percent candidature in 2023 : बिलासपुर में भाजपा के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर ने कहा कि 2023 में 40 फीसदी तक नए चेहरों को टिकट दिया जाएगा। नए का मतलब तो ओम माथुर ने नहीं बताया, लेकिन माना जा रहा है कि नए का मतलब सिर्फ नए है न कि आयु से इसका कोई रिश्ता है। यह वैसा ही नया हो सकता है, जैसा 2019 में बिलासपुर से अरुण साव, रायगढ़ से गोमती साय या जांजगीर में गुहाराम अजगले नए थे। अजगले हैं पुराने परंतु नाम आना नया था। नए का मतलब है जिनमें नयापन और क्षमता दोनों दिखें।

इस नए को अपने लिए मुफीद मानने वाले राजनीतिक नौजवानों में जील फील हो रहा है। लेकिन जो वर्तमान में विधायक हैं या जो कम मार्जिन से हारे थे या जो 2018 में पहली बार लड़े थे और उम्मीद थी कि एक हार माफ मानकर फिर ताल ठोकेंगे, वे सब के सब अब आशंकाओं से घिर गए हैं। परंतु राजनीति आशावाद का नाम है तो निराश नहीं होना चाहिए, क्योंकि 40 फीसदी का मतलब है 90 में से 36 सीटों ही यह फॉर्मूला लागू होगा, बाकी 54 पर नहीं।

इस गणित को और बारीकी से समझने के लिए हमे 2018 में चुनाव लड़ने वालों की पूरी सूची खंगालना होगी। चलिए बताते हैं 2018 में क्या हालात थे और भाजपा इस क्राइटेरिया पर किन्हें हटा सकती है। यह आसान बनाने के लिए जरूरी है कि हम सबका हार-जीत का अंतर समझें। फिलहाल नए का मतलब यही है जिसे जनता ने खारिज न किया हो या खारिज किया भी हो तो बुरी तरह से नहीं बल्कि बहुत मार्जिनल ढंग से। तब देखेंगे कि भाजपा में बुरी तरह से खारिज किए गए नेताओं की फेहरिश्त लंबी है, जबकि कम अंतराल से हारे लोगों की संख्या बहुत कम। अगर यही फॉर्मूला चला तो लंबे अंतराल से हारों का सहारा कोई नहीं होगा। कम अंतराल से हारे कुछ उम्मीद कर सकते हैं, लेकिन पूरी तरह से बेफिक्र नहीं हो सकते।

50 हजार से ज्यादा की महा हार के शिकार 6

2018 यूं तो भाजपा की करारी हार में सभी शामिल थे, लेकिन 6 प्रत्याशी ऐसे थे, जिनकी हार 50 हजार से अधिक मतों से हुई। 2 से ढाई लाख मतदाताओं वाली सीटों में यह हार तब और अधिक खराब है जब मुकाबला त्रिकोणीय हो। 2018 में जोगी और बसपा के गठबंधन की खूब चर्चा थी। इसने प्रदेशभर में 11 फीसदी वोट बटोरकर 7 सीटें जीती थी। अगर भाजपा 40 फीसदी नए चेहरों की बात कर रही है तो सबसे ज्यादा निशाने पर यही 6 होंगे, जो महाहार के शिकार हुए थे। इनमें कवर्धा से अशोक साहू, राजिम से संतोष उपाध्याय, खल्लारी से मोनिका साहू, सरायपाली से श्याम तांडी, सारंगढ़ से केराबाई मनहर और गुंडरदेही से पूर्व कद्दावर भाजपा नेता ताराचंद साहू के बेटे दीपक साहू शामिल हैं।

भाजपा की दुविधा, 45 से 50 हजार से हारे, लेकिन वरिष्ठ हैं

2018 के परिणाम भाजपा के लिए बड़ा सेटबैक थे। इस दौरान पूर्व विधानसभा स्पीकर गौरशंकर अग्रवाल अपनी कसडोल सीट से कांग्रेस की नवयुवती राजनेता शकुंतला साहू के हाथों 45 हजार से अधिक मतों से हार गए। वहीं सिहावा से पिंकी शिवराज शाह भी इसी अंतराल से हारीं। इस लिहाज से देखें तो इनमें से एक वरिष्ठ होकर भी ससम्मान किनारे किए जा सकते हैं।

पूर्व गृहमंत्री जो हारे 40 से 45 हजार मतों से

भाजपा में ऐसे उम्मीदवारों की संख्या वर्ष 2018 में हुए चुनावों में 2 थी, जिन्हें 40 से 45 हजार के भारी मतों के अंतराल से हार का मुंह देखना पड़ा ता। इनमें एक पूर्व मंत्री रामसेवक पैकरा थे, जो टीएस के खास रहे वर्तमान शिक्षामंत्री प्रेमसाय सिंह के हाथों परास्त हुए। दूसरी लवनी राठिया थी, जो धरमजयगढ़ से हारी थी। लवनी को लालजीत राठिया ने हराया था, जो भूपेश बघेल के मुख्यमंत्री बनने की घोषणा पर खुशी से नाच उठे थे।

35 हजार ऊपर हार, रिपीटेशन में रिस्क

35 से हजार से अधिक और 40 हजार से कम मतों से हारने वालों में 6 भाजपा उम्मीदवार थे। इनमें कुछ संसदीय सचिव और कुछ दूसरी, तीसरी बार मैदान में उतरने वाले थे। टीएस सिंहदेव के हाथों लगातार हारने वाले अनुराग सिंहदेव, मरावही से अर्चना पोर्ते, पत्थलगांव से पूर्व संसदीय सचिव शिवशंकर पैकरा, पंडरिया से मोतीराम चंद्रवंशी, सीतापुर से मंत्री अमरजीत भगत के हाथों हारे प्रो. रामगोपाल भगत और डोंगरगढ़ से हारी सरोजनी बंजारे इनमें शामिल हैं। इनमें से अर्चना पोर्ते पूर्व मंत्री व वरिष्ठ आदिवासी नेता भंवर सिंह पोर्ते की बेटी हैं। उन्होंने मरवाही में कांग्रेस को तीसरे नंबर पर धकेलने में भूमिका निभाई। इनके अलावा रामगोपाल भगत और अनुराग सिंहदेव पारंपरिक प्रतिद्वंदी के रूप में लड़ रहे हैं। सरोजनी और शिवशंकर विधायक थे। इस लिहाज से देखें तो यह हारे तो लंबे से हैं, किंतु ओम माथुर की परिभाषा में नए चेहरे नहीं हैं।

मंत्री होकर भी 30 से 35 हजार से हारे

30 हजार से अधिक मतों की करारी हार वालों में बस्तर से पूर्व विधायक सुभाऊराम कश्यप, पूर्व मंत्री दयालदास बघेल, लाभचंद बाफना, रामकिशन सिंह, सांवलाराम डाहिरे, मेघराम साहू, लाल महेंद्र जैसे 7 लोग शामिल हैं। 30 हजार से ऊपर की हार कम बड़ी हार नहीं है। भाजपा की 40 फीसदी नए चेहरों वाली परिभाषा में लाभचंद, दयालदास, सुभाऊराम, मेघराम खरे नहीं उतरते।

25 से 30 हजार से हारे, मगर एक ने हराया भी

2018 में भाजपा के 9 प्रत्याशियों की हार 25 हजार से अधिक मतों से हुई थी। इस ग्रुप में हारने वालों में सबसे ज्यादा साहू प्रत्याशी शामिल हैं। इसका अर्थ यह निकाला गया कि भाजपा को हराने वाला साहू समाज ही था। इसीलिए पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष ही साहू समाज से दे दिया। 25 हजार से अधिक मतों से हारने वाले साहू समाज से ताल्लुक रखने वाले भाजपा प्रत्याशी हितेंद्र साहू खुज्जी, पवन साहू संजारी, मोतीराम साहू भूपेश बघेल की पाटन, जगेश्वर साहू मंत्री ताम्रध्वज की दुर्ग ग्रामीण और लोरमी से पूर्व संसदीय सचिव तोखन साहू हारे थे। बाकियों में पर्यटन मंडल के पूर्व अध्यक्ष संतोष बाफना जगदलपुर, पूर्व विधायक देवलाल दुग्गा भानुप्रतापपुर, पूर्व संसदीय सचिव अवधेश चंदेल बेमेतरा, वरिष्ठ भाजपा नेता संजय ढीढी शामिल हैं। भाजपा के लिए राहत यह थी कि धरमलाल कौशिक ने प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए बिल्हा से अपनी सीट 25 हजार से अधिक मतों से जीती थी। इनमें से फिलहाल तो ओम माथुर की परिभाषा में कोई फिट नहीं दिखता।

9 चेहरे 20 हजार से ऊपर हारे, एक ने कांग्रेस को तीसरे नंबर पर धकेला

भाजपा के 9 विधायक प्रत्याशी ऐसे हैं जो 20 हजार से अधिक मतों से हारे। इनमें भी लैलुंगा से सत्यानंद राठिया, पूर्वमंत्री चंद्रशेखर साहू अभनपुर, महेश गागड़ा बीजापुर के अलावा पूनम चंद्राकर महासमुंद, विजय नाथ सिंह सामरी, कैलाश साहू जैजैपुर, चंद्रिका चंद्राकर दुर्ग शहर और मोहला मानपुर से कंचनमाला भूआर्या हैं। इनमें से महेश गागड़ा, चंद्रशेखर साहू, पूमन चंद्राकर, सत्यानंद राठिया जैसे परिचित और पुराने चेहरे हैं। जबकि जैजैपुर में कांग्रेस को नंबर-3 पर धकेलने वाले कैलाश साहू भी हैं। ऐसे में भाजपा अपने नए सूत्र में किन्हें पिरोएगी कह नहीं सकते, लेकिन ये 9 चेहरे तो लगभग पुराने हैं।

11 भाजपा प्रत्याशी जो 15 से 20 हजार के बीच हारे

2018 में 15 से लेकर 20 हजार मतों से हारने वालों की संख्या 15 है। इनमें 11 भाजपा, 1 जोगी कांग्रेस और 3 कांग्रेस के हैं। रामपुर से पूर्व मंत्री ननकी राम कंवर ने अपने पुराने प्रतिद्वंदी श्याम कंवर को तीसरे नंबर पर धकेल दिया। नंबर दो पर रहे जोगी कांग्रेस के फूलसिंह राठिया। लेकिन दिग्गज देवजीभाई पटेल धरसींवा, राजनांदगांव के पूर्व महापौर मधुसूदन यादव डोंगरगांव, लच्छूराम कश्यप चित्रकोट, चंपादेवी पावले भऱतपुर, ओपी चौधरी खरसिया जीत नहीं पाए। इस ग्रुप में हीरासिंह मरकाम कांकेर से, डीसी पटेल बसना से, हरिशंकर नेताम केशकाल से, श्रीचंद सुंदरानी रायपुर उत्तर, रजनी त्रिपाठी भटगांव, विजय प्रताप सिंह प्रेमनगर से हारने वालों में शामिल हैं। 15 से 20 हजार तक जीतने वालों में 4 भाजपा के विधायक डॉ. रमन सिंह राजनांदगांव, बृजमोहन अग्रवाल रायपुर दक्षिण, विद्यारतन भसीन वैशाली नगर, ननकीराम कंवर रामपुर शामिल हैं। इस श्रेणी में आने वाले 15 में से 4 जीते हुए हैं। भसीन बीमार हैं, बाकी हैं दिग्गज, लेकिन चेहरे पुराने हैं। नए चेहरों की खोज भाजपा को करना है, इनमें से अधिकतर सीटों पर तो नए चेहरों की दरकार है ही।

10 हजार से ज्यादा की छोटी हार में भाजपा के 7 प्रत्याशी हारे

2018 में भाजपा के 7 प्रत्याशियों ने 10 से 15 हजार मतों की रेंज में हार का सामना किया था। इनमें रायगढ़ से स्वर्गीय रोशन अग्रवाल, पूर्व मंत्री विक्रम उसेंडी अंतागढ़, राजेश मूणत रायपुर पश्चिम, अमर अग्रवाल बिलासपुर के साथ पूर्व विधायक नंदे साहू रायपुर ग्रामीण, पूर्व सांसद के बेटे विकास महतो कोरबा, पूर्व संसदीय सचिव लखनलाल देवांगन कटघोरा शामिल हैं। 10 से 15 हजार की रेंज में जीतने वाले भाजपाइयों में डॉ. बांधी मस्तूरी, अजय चंद्राकर कुरूद इन दोनों ने कांग्रेस को नंबर-3 पर धकेला और शिवरतन शर्मा भाटापारा, डमरूधर पुजारी बिंद्रानवागढ़ शामिल हैं। ओम माथुर की नए चेहरों वाली परिभाषा में पूर्व मंत्री आएंगे या नहीं कहना मुश्किल है।

5 से 10 हजार मतों से जो हारे-जीते वे टिकट के लिए ज्यादा उम्मीद से

2018 में 5 ऐसे भाजपा प्रत्याशी थे जो 5 से 10 हजार की रेंज में हारे थे। जबकि 2 ऐसे हैं जो इस रेंज में भाजपा से जीते हैं। इनमें पूर्वमंत्री पुन्नूलाल मोहले मुंगेली और बेलतरा से रजनेश सिंह हैं। इस रेंज में हारने वालों मे बिलाईगढ़ से डॉ. सनम जांगड़े, पाली-तानाखार से रामदयाल उइके ऐसे हैं जो नंबर-3 पर रहे। वहीं जशपुर से गोविंदराम भगत, कोंटा से धनीराम बोरसे ने अच्छी फाइट दी, लेकिन जीत नहीं सके। इनमें रजनेश सिंह और मोहले को जोगी कांग्रेस के प्रत्याशियों द्वारा काटे गए कांग्रेस वोटर्स का लाभ मिला।

5 हजार के अंदर हारे 11, हर्षिता पांडे समेत 4 ने भाजपा को धकेला नंबर-3 पर

2018 में भाजपा के 4 ऐसे लोग थे जो 5 हजार जैसे बहुत कम अंतराल से जीते थे। इनमें वर्तमान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल, सौरभ सिंह अकलतरा, रंजना दीपेंद्र साहू धमतरी और दंतेवाड़ा से भीमा मंडावी शामिल थे। बाद में भीमा मंडावी की नक्सल हमले में मौत के बाद यह सीट भाजपा के हाथ से चली गई। इसमें हारने वालों में जूदेव परिवार की बहू संयोगिता जूदेव चंद्रपुर, तखतपुर से हर्षिता पांडे, बलौदा बाजार से टेशू धुरंधर और पामगढ़ से अंबेश जांगड़े भाजपा को नंबर-2 पर भी नहीं ला सके। संयोगिता बसपा की गीतांजली पटेल से भी पीछे रही और चंद्रपुर से कांग्रेस के रामकुमार यादव ने जीत दर्ज कराई। जबकि अंबेश कांग्रेस गोरेलाल बर्मन से भी पीछे रहकर बसपा की इंदू बंजारे की जीत का जरिया बने। हर्षिता पांडेय ने तो भाजपा को बहुत पीछे धकेल दिया, वे तखतपुर से फाइट करते हुए जोगी कांग्रेस के संतोष कौशिक से भी काफी पीछे रही और यहां कांग्रेस की रश्मि सिंह आसानी से जीत गई। यही हाल टेशू धुरंधर का रहा, यहां वे तीसरे नंबर पर थे।

भाजपा लाएगी 40 फीसद नए चेहरे तो किन्हें रिप्लेस करेगी

वैसे तो 90 में 54 के टिकटों पर नए-पुराने चेहरों वाला गणित लागू नहीं होता, लेकिन 36 पर यह होता है। भाजपा अगर इसे शत-प्रतिशत न लागू करे और लगभग 25 से 30 पर भी लागू करेगी तो भी यह बड़ा क्रांतिकारी फैसला हो सकता है। गुजरात से निकला यह फॉर्मूला दशकों से अनेक राज्यों में भाजपा को फायदे दिलाता रहा, लेकिन इन राज्यों में कुल सीटों के अनुपात में इतनी बड़ी कटौतियां नहीं की जाती। भाजपा अधिकतम 10-20 सीटों में नए चेहरे उतारकर नएपन का परसेप्शन बनाती रही है, लेकिन यहां परसेप्शन से काम चलने वाला नहीं। तो जाहिर है, भाजपा इसे हंड्रेड परसेंट अप्लाई भी कर सकती है। बहरहाल भाजपा के पुराने, घुटे, जमे नेताओं के पेट की गुड़गुड़ाहट को कांग्रेस जरूर सुनेगी।

Ad code

1 / 7
2 / 7
3 / 7
4 / 7
5 / 7
6 / 7
7 / 7

ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer

Ad Code

Responsive Advertisement