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मां दंतेश्वरी मंदिर में 2100 रुपए में VIP दर्शन : 1 जनवरी से मिलेगी सुविधा, हर दिन पहुंच रहे करीब 4 हजार श्रद्धालु
नए साल के मौके पर बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी के मंदिर में भक्तों का तांता लग रहा है। हर दिन करीब 4 हजार भक्त माता के दर्शन कर रहे हैं। बिहार से लेकर पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश, तेलंगाना से भी भक्त माता के दरबार पहुंच रहे हैं। खास बात है कि इस बार 1 जनवरी से भक्तों को VIP दर्शन की सुविधा मिलेगी। इसके लिए 2100 रुपए की पर्ची कटवानी पड़ेगी। इससे पहले यह सुविधा सिर्फ नवरात्र में ही दी जा रही थी।
देश के कुल 52 शक्तिपीठों में से एक छ्त्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में स्थित बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी का मंदिर विश्व विख्यात हो गया है। चैत्र नवरात्र, शारदीय नवरात्र और दिसंबर और जनवरी के महीने में सबसे ज्यादा भीड़ होती है। कोई संतान प्राप्ति की तो कोई नौकरी लगाने की मन्नत लेकर माता के मंदिर आए हैं। किसी ने बेटी की शादी करवाने माता से मुराद मांगी है।
ये है मंदिर से जुड़ी मान्यता
प्रधान पुजारी हरेंद्र नाथ जिया ने बताया कि, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब विष्णु भगवान ने अपने चक्र से सती के शरीर को 52 भागों में विभक्त किया था, तो उनके शरीर के 51 अंग देशभर के विभिन्न हिस्सों में गिरे थे और 52वां अंग उनका दांत यहां गिरा था।
इसलिए देवी का नाम दंतेश्वरी और जिस ग्राम में दांत गिरा था उसका नाम दंतेवाड़ा पड़ा। बदलते वक्त के साथ मंदिर की तस्वीर भी बदलती गई। माता के प्रति श्रद्धालुओं के मन में अटूट आस्था और विश्वास है।
2100 में 3 से 4 लोग कर सकेंगे दर्शन
मंदिर के प्रधान पुजारी हरेंद्र नाथ जिया ने बताया कि, नवरात्र के बाद सब VIP दर्शन की सुविधा बंद थी। लेकिन, भक्तों की बढ़ती भीड़ को देखते हुए 1 जनवरी से VIP दर्शन की सुविधा फिर से शुरू की जा रही है। मंदिर के पास स्थित काउंटर से भक्त 2100 रुपए की पर्ची कटवा सकते हैं। इस पर्ची से 3 से 4 लोग गर्भगृह तक जाकर दर्शन कर सकते हैं। मंदिर में धोती की भी व्यवस्था की जाएगी।
ऐसे पहुंच सकते हैं मंदिर
दंतेवाड़ा जिला छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर में स्थित है। दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय में शंखनी और डंकनी नदी के संगम पर माता का मंदिर है। यदि भक्त रायपुर से माता के दरबार आना चाहते हैं तो सड़क मार्ग से करीब 400 किमी की दूरी तय करनी होगी। रायपुर के बाद धमतरी, कांकेर, कोंडागांव, बस्तर (जगदलपुर) जिले की सरहद पार कर दंतेवाड़ा पहुंचा जा सकता है।
इसके अलावा हैदराबाद और रायपुर से भक्त फ्लाइट के माध्यम से जगदलपुर और फिर वहां से सड़क मार्ग के माध्यम से दंतेवाड़ा पहुंच सकते हैं। ओडिशा, तेलंगाना, और महाराष्ट्र के भक्तों के लिए भी राह आसान है। ओडिशा के भक्त पहले जगदलपुर, तेलंगाना के सुकमा और महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के भक्त बीजापुर जिला होते हुए सीधे दंतेवाड़ा पहुंच सकते हैं। ये तीनों जिले दंतेवाड़ा के पड़ोसी जिले हैं।
विशाखापट्टनम से किरंदुल तक 2 पैसेंजर ट्रेनें चलती हैं। ओडिशा और विशाखापट्टनम के भक्त रेल मार्ग से दंतेवाड़ा तक आ सकते हैं। दंतेवाड़ा रेलवे स्टेशन से मंदिर तक की दूरी करीब डेढ़ से दो किमी है। वहीं बस स्टैंड से 500 मीटर है।
श्रद्धालु अपने निजी वाहन से आते हैं तो मंदिर के बाहर ही मुख्य सड़क पर वाहनों की पार्किंग कर सकते हैं। क्योंकि, अभी मंदिर में निर्माण काम चल रहा है। इसलिए गाड़ियां अंदर नहीं जा सकती। बाकी भक्तों की भीड़ देखते हुए प्रशासन उस हिसाब से बंदोबस्त करेगी।
कहां रुके ?
जय स्तंभ चौक से मां दंतेश्वरी मंदिर की तरफ जाने वाले मार्ग में ही एक धर्मशाला है। कोई भी भक्त यहां रुक सकता है। इसके अलावा दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय और गीदम इन दोनों शहरों में प्राइवेट होटल और डोरमेट्री भी हैं।
यहां 1 हजार रुपए से लेकर 1500 रुपए तक रूम आसानी से मिल जाते हैं। सुकमा, कोंटा और तेलंगाना से आने वाले भक्त दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय और बीजापुर, जगदलपुर और रायपुर की तरफ से आने वाले भक्त गीदम और दंतेवाड़ा दोनों जगहों में होटल और धर्मशाला में रुक सकते हैं।
भक्त बोले- माता से जुड़ी है आस्था
माता के दर्शन करने पहुंचे छत्तीसगढ़ के महासमुंद के एक दंपती ने दैनिक भास्कर से बातचीत की। उन्होंने कहा कि, पहली बार माता के मंदिर आए हैं। सुना था मां सबकी मुराद पूरी करतीं हैं। हमने बेटी की शादी की मन्नत मांगी है।
वहीं उत्तर प्रदेश के चित्रकूट से भक्तों की एक टोली भी मंदिर पहुंची। इस टोली के सदस्य अविनाश मिश्रा ने बताया कि, हम यहां पहली बार आए हैं। माता के प्रति बड़ी आस्था है। 7 दिनों का अनुष्ठान चल रहा है इसलिए माता के चरणों की धूल लेने के लिए यहां आए हुए हैं।
दुकानदार बोले- इसबार अच्छी कमाई
मंदिर के सामने दुकान लगाने वाले राजेश कश्यप समेत अन्य दुकानदारों का कहना है कि, पिछले कुछ सालों की तुलना में इस बार अधिक भीड़ है। 15 दिसंबर से भीड़ बढ़ने लगी है। कमाई भी अच्छी हो रही है। उम्मीद है कि 15 जनवरी तक ऐसी ही भीड़ रहेगी।
ऐसा है मंदिर का स्ट्रक्चर
दरअसल, मां दंतेश्वरी मंदिर का गर्भगृह जहां देवी की मूर्ति है वह सदियों पहले ग्रेनाइट पत्थरों से बनाया हुआ है। बताया जाता है कि, शुरुआत में जब मंदिर यहां स्थापित हुआ था तो उस समय सिर्फ गर्भगृह ही हुआ करता था।
बाकी का हिस्सा खुला होता था। लेकिन, जैसे-जैसे राजा बदले तो उन्होंने अपनी आस्था के अनुसार मंदिर का स्वरूप भी बदला। लेकिन, गर्भगृह से कोई छेड़खानी नहीं की गई थी। गर्भगृह के बाहर का हिस्सा बेशकीमती इमारती लकड़ी सरई और सागौन से बना हुआ है। जिसे बस्तर की रानी प्रफुल्लकुमारी देवी ने बनवाया था।
भैरव बाबा हैं माता के अंगरक्षक
गर्भगृह के बाहर दोनों तरफ दो बड़ी मूर्तियां भी स्थापित है। चार भुजाओं वाली यह मूर्तियां भैरव बाबा की है। कहा जाता है कि, भैरव बाबा मां दंतेश्वरी के अंगरक्षक हैं। मंदिर के प्रधान पुजारी हरेंद्र नाथ जिया के भतीजे और माता के पुजारी विजेंद्र जिया ने बताया कि, ग्रंथों में भी कहा गया है कि माई जी का दर्शन करने के बाद भैरव बाबा के दर्शन करना भी जरूरी है।
यदि भक्त भैरव बाबा को प्रसन्न कर लिए तो वे उनकी मुराद माता तक पहुंचा देते हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे भक्तों की मुराद जल्द पूरी हो जाती है।
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गरुड़ स्तंभ की यह है मान्यता
सदियों पहले यहां गंगवंशीय और नागवंशीय राजाओं का राजपाठ था। फिर काकतीय वंश यहां के राजा बने। जितने भी राजा थे उनमें कोई देवी की उपासना करता था तो कोई शिवजी का भक्त था। कुछ विष्णु भगवान के भी भक्त हुआ करते थे। जिन्होंने मंदिर के मुख्य द्वार के सामने गरुड़ स्तंभ की स्थापना करवाई। मान्यता यह है कि, यदि गरुड़ स्तंभ को पकड़कर कोई भक्त अपने दोनों हाथों की उंगलियों को छू लेता है तो उसकी मुराद पूरी जो जाती है।
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