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बिहार में पूर्ण शराबबंदी के बाद भी मोतिहारी में कैसे पहुँची शराब, 2016 से अबतक 5 लाख से ज्यादा केस दर्ज



News Credit By BBC


"शराब कभी बंद नहीं हुआ. शराब बंद होता तो ऐसी दशा नहीं होती. जवान-जवान लड़कों की मौत हुई है. मेरा दामाद (अशोक पासवान- 40 वर्ष) मर गया. मेरी बेटी का सहारा छीन गया. एक और बेटी विधवा हो गई. मेरे बुढ़ापे का सहारा छीन गया. अब कौन इस बूढ़े को और पूरे परिवार को देखेगा?"

ऐसा कहते-कहते बिहार के मोतिहारी ज़िले की रहने वाली 65 वर्षीय सोना देवी फफक पड़ती हैं. रुलाई भी ऐसी कि किसी का भी सीना बैठ जाए और बैठे भी क्यों नहीं? परिवार का एक मात्र कमाऊ सदस्य अब इस दुनिया में नहीं रहा.

सोना देवी के फूस का घर देखकर उनके परिवार की आर्थिक और सामाजिक स्थिति का अंदाज़ा कोई भी लगा लेगा. घर के नाम पर फूस का इतना छोटा सा घर है कि घुसते ही ख़त्म हो जाता है. न कोई चौकी और न कोई खाट. सब्जी के नाम पर कोने में पड़े आलू, और घर के बाहर मिट्टी का चूल्हा.

बिहार के मोतिहारी ज़िले के अलग-अलग गाँवों से ज़हरीली शराब की जद में आकर मरने वालों की संख्या बीते तीन दिनों में 30 पार कर गई है.

हालाँकि ज़िला प्रशासन की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति के हिसाब से कुल 31 लोगों की मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हुई है. इनमें से सिर्फ़ 6 लोगों का ही पोस्टमॉर्टम कराया गया है. इसके अलावा ज़िले के सदर अस्पताल में 15 और लोग इलाज करा रहे हैं. 14 अन्य लोगों का निजी अस्पतालों में इलाज चल रहा है. इनमें से 4 लोगों की स्थिति गंभीर है, जबकि अभी भी मरीज़ों के अस्पताल पहुँचने का सिलसिला थमा नहीं है.

इन मौतों पर सदर अस्पताल, मोतिहारी के अधीक्षक डॉक्टर अंजनी कुमार बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, "14 अप्रैल की रात एक पोस्टमॉर्टम का मामला आया था. उसका सैंपल विधि विज्ञान प्रयोगशाला (एफएसएल) के पास भेजा गया है. रिपोर्ट आने के बाद ही मौत की असली वजह सामने आएगी."

अधीक्षक के अनुसार, सदर अस्पताल में कुल 30 संदिग्ध मामले आए थे, जिसमें से 14 लोग अब भी इलाज करा रहे हैं और 8 मरीज़ रेफर कर दिए गए हैं. वहीं कुछ मरीज वापस जा चुके हैं. संदिग्ध मरीज़ों में आ रहे लक्षण के सवाल पर उन्होंने कहा कि उल्टी, दस्त, पेट में ऐंठन और आँखों में धुंधलापन जैसी बातें मरीज़ों में आम तौर पर देखने को मिलीं.

पुलिस का दावा है कि पूरे मामले में तीन दिन में पुलिस ने 174 शराब तस्करों को गिरफ्तार किया है. पूरे मामले में 5 थानाध्यक्षों को निलंबित कर दिया गया है, जबकि 9 चौकीदार और 2 एएसआई पहले ही निलंबित किए जा चुके हैं.

बेटी पूछ रही- अब कौन उसे पढ़ाएगा?
मोतिहारी ज़िले में जिन तीन लोगों का मौत के बाद पोस्टमॉर्टम हुआ, उनमें से रामेश्वर राम उर्फ़ जटा राम भी एक थे.

उनकी बेटी रिंकी कुमारी (18 साल) अपने पिता को याद करते हुए कहती हैं, "मैंने इसी साल ग्रैजुएशन में एडमिशन लिया है. जब पहली लिस्ट में नहीं हुआ, तो पापा ने सात हज़ार रुपये खर्च करके मेरा एडमिशन डिग्री कॉलेज में करवाया. वो चाहते थे कि मैं आगे पढ़ूं, लेकिन अब तो लगता है कि ज़िंदगी में अंधेरा छा गया है. मुझे कौन पढ़ाएगा?"

जटाराम की पत्नी धनवन्ती देवी बीबीसी से बातचीत में कहती हैं कि जटाराम ही घर में कमाने वाले सदस्य थे. वे चिकन बेचते थे.

लगभग एक सी पृष्ठभूमि के हैं पीड़ित
मरने वालों और इलाज करने वालों को देखकर और इलाक़े में घूमकर एक और बात स्पष्ट तौर पर दिखती है कि इनमें से अधिकांश की सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि एक जैसी कमजोर है.

घर के किसी कमाऊ सदस्य को खोना तो जीवन के सपनों के मर जाने जैसा है.

ज़्यादातर पीड़ित परिवार पिछड़े और दलित तबके से ताल्लुक़ रखने वाले हैं. कई परिवारों तक रसोई गैस, बिजली पानी की बेसिक सरकारी योजनाएं भी नहीं पहुँची हैं.
इनकी प्राथमिकता बच्चों को पढ़ाने के बजाय उनकी शादी करने की होती है और यदि वो लड़की हुई तो फिर शादी और जल्दी करना चाहते हैं.

जैसे ज़िले के तुरकौलिया थाना क्षेत्र के लक्ष्मीपुर गाँव में हमारी मुलाक़ात जटा राम के परिवार से हुई. उनकी 18 साल की बेटी रिंकी की शादी लगभग तय हो चुकी है. उनकी पत्नी बेटी के होने वाली पति की तस्वीर दिखा रही थीं.

वहीं, गाँव के दुसाध टोले में रहने वाली बिंदु देवी के परिवार की कहानी भी लगभग वैसी ही है. एक बेटा महाराष्ट्र के भुसावल कमाने गया था और पिता के तबीयत की ख़बर सुनकर लौट आया है. वहीं, 12-13 साल के बेटे ने पिता की अंत्येष्टि की है. इसके साथ ही इस परिवार में भी बेटी की शादी के लिए तमाम ख़रीदारी होने लगी थी और जो थोड़ा-बहुत पैसा हाथ में था, वो भी पिता ध्रुव पासवान के इलाज में लग गया.

मृतक ध्रुव पासवान की पत्नी बिंदु देवी बीबीसी से बातचीत में कहती हैं, "बेटी की शादी का दिन रखा गया था. किस्त पर कुछ सामान वगैरह भी ले लिए थे. वही कमाने वाले व्यक्ति थे. घर का गार्जियन ही चला गया. बेटे अभी इस लायक़ हैं नहीं कि ज़िम्मेदारी उठाएँ. हम महिलाओं को तो कोई क़र्ज़ भी नहीं देता, सब कहेंगे कि जब घर में कोई मर्द ही नहीं है, तो तुम पैसा चुका ही नहीं पाओगी. अब सरकार ही कुछ करे. हम किसकी ओर देखेंगे?"

उस रात क्या हुआ?
मोतिहारी ज़िले के भीतर इस बीच ज़हरीली शराब से मरने वाले और इलाज करा रहे लोगों के बीच एक बात जो ग़ौर करने वाली है कि सभी ने पाउच वाली शराब पी. जिसने भी थोड़ी अधिक शराब पी, वो चल बसा.

मोतिहारी के सदर अस्पताल में इलाज करा रहे उमेश राम बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, "शुक्रवार का दिन था और दवनी (फसल से अनाज निकालना) हो रही थी कि तभी भाई (जटा राम) कहीं से पाउच लेके चले आए. वो दो और लोगों के साथ (अशोक पासवान और ध्रुव पासवान) बैठकर पिए. और मैंने वहा से जरा हटकर पी. सबकी तबीयत ख़राब होने लगी. मैंने थोड़ी कम पी थी, इसलिए बच गया लेकिन बाकी तीनों नहीं बच सके."

शराब कहां से मिली? ये पूछने पर सदर अस्पताल में इलाज करा रहे प्रमोद पासवान कहते हैं, "दारू तो बराबर मिलती है. कहीं न कहीं तो मिल ही जाती है. चाहे थैली मिले या फिर अंग्रेज़ी. प्रशासन एक तरफ़ से घेरती है, तो लोग दूसरी तरफ़ भागकर चले जाते हैं. आख़िर लोग घर में तो बना नहीं रहे. उस दिन (शुक्रवार को) मैंने भी पी ली थी. थोड़ी कम (एक थैली) ही पी थी, लेकिन जब चारों तरफ़ शोर होने लगा, तो धड़कन बढ़ गई. अधिक पी लेता तो मैं भी नहीं बचता."

हालांकि पूरे मामले में लापरवाही बरतने के लिए 16 अधिकारियों पर कार्रवाई हुई है, लेकिन पुलिस कैमरे पर इस बारे में कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है कि शराबबंदी वाले राज्य में शराब लोगों तक कैसे पहुँची.

पूरे मामले में अब तक 174 गिरफ़्तारियां भी हुई हैं और तक़रीबन 1,700 लीटर देसी शराब और तक़रीबन 50 लीटर विदेशी शराब बरामद भी किया गया है.

बिहार शराबबंदी क़ानून: एक नज़र (2016-2022)
1 अप्रैल 2016 से अब तक 5 लाख़ से ज़्यादा केस दर्ज हुए.
6.5 लाख़ से ज़्यादा लोग गिरफ़्तार हुए.
क़रीब एक लाख लीटर अवैध देशी शराब ज़ब्त.
1.5 करोड़ लीटर विदेशी शराब ज़ब्त.
अवैध शराब के कारोबार में शामिल 80 हज़ार से ज़्यादा गाड़ियां ज़ब्त.
1 अप्रैल, 2016 से 31 दिसंबर, 2017 तक अवैध शराब पकड़े जाने पर 93,210 मामले दर्ज.
2022 में अब तक ये आंकड़ा क़रीब 1 लाख़ 40 हज़ार का हो चुका है.

हमलावर विपक्ष
बिहार में अप्रैल 2016 में शराबबंदी लागू हुई थी, तब से अब तक राज्य में नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री रहे हैं. चाहे वे भाजपा के साथ सरकार चला रहे हों, या फिर महागठबंधन का हिस्सा रहे हों. हालाँकि विपक्षी दल समय-समय पर बदलते रहे हैं. जैसे आज भाजपा विपक्ष की भूमिका निभा रही है.

इस बीच नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा पीड़ित परिवारों से मिलने मोतिहारी पहुँचे थे.

पीड़ित परिवारों से मिलते हुए उन्होंने ट्विटर पर लिखा, "माननीय मुख्यमंत्री जी आपके शासन-प्रशासन का शराब माफ़िया से गठजोड़ बच्चों को बना रहा अनाथ. विधवा कर रही विलाप. बिहार की जनता पूछ रही इस नरसंहार का ज़िम्मेदार कौन? सात दल की सरकार जवाब दो."

वहीं, मोतिहारी सदर अस्पताल में इलाजरत लोगों से मिलने राज्य के विधि मंत्री शमीम अहमद भी पहुँचे.

सूबे में शराबबंदी के बावजूद न रुकने वाली मौतों और बीबीसी के सवाल पर वे कहते हैं, "बिहार सरकार लगातार कोशिशें कर रही कि लोग ऐसे काम से बचें. एहतियात बरतें. मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री की अगुआई में राज्य के भीतर शराबबंदी लागू है. प्रशासन भी उचित कार्रवाई में लगा है."
Credit By BBC

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