सराईपाली में भू-माफिया की दबंगई, पुरखों के जंगल को JCB से रौंदा
महासमुंद : जिले के सराईपाली में प्रशासनिक संरक्षण या चूक भू-माफिया के हौसले इतने बुलंद हैं कि उन्होंने निजी जमीन की आड़ में उस ऐतिहासिक वन भूमि पर ही जेसीबी चलवा दी, जो सौ साल से 'बड़ेझाड़ का जंगल' के नाम से सरकारी दस्तावेजों में दर्ज है। खुलेआम हो रही इस लूट का जब ग्राम के एक आम नागरिक ने पर्दाफाश किया, तब जाकर कुंभकर्णी नींद में सोए प्रशासन ने आनन-फानन में कार्रवाई का दिखावा करते हुए काम पर रोक लगाई है।
क्या है पूरा मामला
यह सनसनीखेज मामला पैकिन गांव का है, जहां परसदा निवासी पूर्णोबाई पटेल (प्रदीप पटेल) ने खरीदी गई जमीन के बहाने सरकारी रास्ते और चारागाह को समतल करना शुरू कर दिया। जब दबंगई और रसूख के सामने जागरूक ग्रामीणों के साथ लिंगराज दास एवं युवाओं ने इस लूट के खिलाफ आवाज उठाने का साहस दिखाया और तहसीलदार के दफ्तर में शिकायत दर्ज कराई। शिकायत जब अफसरों की मेज पर पहुंची और धूल फांक रही थी तब पुरानी फाइलों को खंगाला गया, तो जो सच सामने आया, और प्रमुखता से खबर प्रकाशित किया गया जिसके बाद सच्चाई सबके सामने आई कि 1929-30 के मिसल बंदोबस्त में विवादित भूमि (खसरा क्र. 606, 610) 'बड़ेझाड़ का जंगल' थी और 1955-56 में 'अमराई बाग'। यह है कि जो भूमि ब्रिटिश हुकूमत से लेकर आजाद भारत के शुरुआती दौर तक जंगल और बाग के रूप में दर्ज थी, वह आखिर भू-माफिया के हाथों में कैसे पहुंच गई।
आन फानन में जांच के आदेश
क्या राजस्व विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से यह पूरा खेल खेला गया मामले के तूल पकड़ते और ऐतिहासिक दस्तावेज सामने आने के बाद, प्रशासन ने अपनी लाज बचाने के लिए 18 अगस्त को स्थगन आदेश जारी किया और 20 अगस्त को एक जांच टीम गठित कर दी। अब 1 सितंबर की तारीख महज एक पेशी नहीं, बल्कि प्रशासन की नीयत और रसूखदारों के गठजोड़ के खिलाफ उसकी कार्रवाई की अग्निपरीक्षा है। देखना यह है कि जांच की लीपापोती होती है या फिर इस 'जंगल' के लुटेरों पर कानून का शिकंजा कसता है।
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