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कर्नाटक चुनाव : ये रही भाजपा की नैया डूबाने और कांग्रेस को जिताने वाली छह वजहें

 



News credit by BBC Hindi 

कर्नाटक चुनाव में बीजेपी की नैया डूबाने और कांग्रेस को जिताने वाली छह वजहें

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद भारतीय जनता पार्टी में हार पर चिंतन के लिए बैठक होने जा रही है. उधर कांग्रेस पार्टी में जीत के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए विचार शुरू हो गया है.

कर्नाटक के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस, दोनों ने अपना पूरा ज़ोर लगाया था लेकिन बीजेपी से कुछ ग़लतियां और कांग्रेस पार्टी के लिए कुछ तरक़ीबें कारगर रहीं.

बीजेपी ने कौन सी ग़लतियां कीं और चुनावों के मद्देनज़र कांग्रेस की तरकीबें क्या रहीं, इस पर विशेषज्ञों की राय के आधार पर ये छह बातें सामने आती हैं.



बीजेपी की छह ग़लतियाँ

1- सत्ता विरोधी लहर की कोई मुनासिब काट नहीं
लगभग सभी विशेषज्ञ इस बात पर सहमत नज़र आए कि कर्नाटक चुनाव में भाजपा की हार का बड़ा कारण सत्ता विरोधी लहर था जिसकी काट के लिए पार्टी मुनासिब उपाय करने में विफल रही.

एक निश्चित अवधि तक सत्ता में रहने के बाद, मतदाता अक्सर सत्ताधारी दल के प्रदर्शन से असंतुष्ट हो जाते हैं और बदलाव चाहते हैं. बीजेपी 2019 से सत्ता में थी.

बीजेपी को बेरोज़गारी और आसमान छूती महंगाई जैसे मुद्दों का सामना करना था. कांग्रेस ने इन्हीं मुद्दों को उठाया लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार, बीजेपी इस पर कोई ठोस रणनीति तैयार करने में नाकाम रही.

2- स्टार कैंपेनर मोदी और पार्टी के दूसरे केंद्रीय नेताओं पर अधिक निर्भरता
राजनीतिक विशेषज्ञ विजय ग्रोवर ने बीबीसी को बताया कि स्थानीय नेताओं को चुनाव अभियान में अधिक अहमियत नहीं दी गई और केंद्र के नेताओं पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता थी. ब्रांड मोदी का ज़रूरत से अधिक इस्तेमाल भी काम नहीं आया.

बीजेपी का ख्याल था कि पीएम मोदी की रैलियों और रोड शो से कम से कम अतिरिक्त 20 सीटें इसकी झोली में गिरेंगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

3- लोगों ने ध्रुवीकरण की राजनीति को ना कहा
कर्नाटक में कांग्रेस के सोशल मीडिया अध्यक्ष ने अपने एक ट्वीट में कहा कि ये साफ़ है कि बीजेपी की नफ़रत की सियासत की हार हुई है.

उन्होंने लिखा, "मोदी ने जितना हो सके मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने की कोशिश की. अमित शाह और हिमंता बिस्व सरमा ने प्रचार के आख़िरी दिनों में अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ और भी बुरी बातें कहीं. लेकिन वो विफल रहे."


चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में पीएम नरेंद्र मोदी ने अभियान को तेज़ी देने की कोशिश की और अपने डेढ़ हफ़्ते के प्रवास में औसतन हर दिन तीन से चार रैलियां, रोड शो, सभाएं कीं.

4- गुटबाजी और पार्टी में बग़ावत
दक्षिणपंथी विचारक और राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर सुवरोकामल दत्ता ने चुनावी मुहिम के समय कर्नाटक का दौरा किया था.

वो कहते हैं, "पार्टी में जो बग़ावत हुई और जिस तरह की कलह थी, ख़ास तौर से सेंट्रल (लिंगायत वाला इलाक़ा) और महाराष्ट्र से सटे कर्नाटक के इलाक़ों में, उसने पार्टी को बड़ा भारी नुकसान पहुँचाया."

उनके मुताबिक़, "साथ ही जगदीश शेट्टार की मांगों की कहीं न कहीं सुनवाई पार्टी के भीतर ही होनी चाहिए थी, जो किसी कारणवश बीजेपी ने नहीं किया. इसका खामियाज़ा पार्टी को सेंट्रल कर्नाटक और उत्तरी कर्नाटक में भुगतना पड़ा."

दूसरे स्थानीय विशेषज्ञ भी कहते हैं कि कर्नाटक में पार्टी के भीतर आपसी कलह, आंतरिक संघर्ष और गुटबाज़ी के कारण बीजेपी की स्थिति कमज़ोर हो गई थी.

यदि पार्टी एकजुटता से आंतरिक विभाजनों को दूर करने के बाद चुनाव मैदान में उतरती तो इसका असर उसके चुनावी प्रदर्शन पर पड़ सकता था.

5- कद्दावर नेता येदियुरप्पा को नज़रअंदाज़ कर देना
इसमें लगभग सभी जानकारों की सहमति है कि पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के ऊँचे क़द के नेता येदियुरप्पा को नज़रअंदाज़ करके पार्टी ने भारी ग़लती की.

इतना ही नहीं यदि भाजपा ने सत्ता में अपने पिछले कार्यकाल के दौरान कई वादे किए थे, लेकिन उन्हें पूरा करने में विफल रही. इससे मतदाताओं के विश्वास और समर्थन पर असर पड़ा और इससे का असर भी पार्टी के प्रदर्शन पर पड़ा.

6- कांग्रेस के 'पे-सीएम' अभियान को सही तरीक़े से काउंटर नहीं किया गया
कर्नाटक राज्य ठेकेदार संघ की शिकायत थी कि प्रत्येक टेंडर को पारित कराने के लिए 40 प्रतिशत कमीशन की मांग की जाती है, जिसे कांग्रेस पार्टी ने अपने चुनावी फ़ायदे के लिए भरपूर इस्तेमाल किया.

पार्टी ने एक लोकप्रिय यूपीआई ऐप के क्यूआर कोड का इस्तेमाल किया और इसे पे-सीएम कोड कहा. पार्टी ने इसका इस्तेमाल यह संदेश देने के लिए किया कि बोम्मई सरकार में भ्रष्टाचार बढ़ा है.

डॉक्टर दत्ता ने बताया, "40 प्रतिशत रिश्वत वाला अभियान जो कांग्रेस ने तीन-चार महीनों तक चलाया उसने कहीं न कहीं जनता को प्रभावित करने का काम किया हालांकि इस भ्रष्टाचार के इल्ज़ाम को साबित नहीं किया जा सका है, लेकिन नैरेटिव के तौर पर ये काम कर

चुनाव से छह महीने पहले हुई भारत जोड़ा यात्रा ने स्थानीय कांग्रेस इकाइयों में हौसला भरने का काम किया.


कांग्रेस पार्टी के जीत के छह कारण क्या थे?

1- समय से पहले चुनावी रणनीति तैयार करना और उस पर अमल शुरू करना
राजनीतिक विश्लेषक विजय ग्रोवर के मुताबिक़, कांग्रेस पार्टी ने ज़मीनी हालात का जायज़ा लेते हुए नई चुनावी रणनीति बनाई, बीजेपी के नैरेटिव का मुक़ाबला किया और सत्तारूढ़ पार्टी के ख़िलाफ़ अपने प्रमुख चुनावी मुद्दे के रूप में भ्रष्टाचार को प्राथमिकता दी. इसकी तैयारी पार्टी ने महीनों पहले कर ली थी.

बोम्मई ने भी हार को स्वीकार करते हुए कहा कि कांग्रेस ने चुनावी तैयारी उनसे पहले शुरू कर दी थी.

वरिष्ठ पत्रकार इमरान क़ुरैशी का मानना है कि कांग्रेस को सबसे अधिक फ़ायदा इसी रणनीतिक पहल से हुआ है.

2- एंटी-इनकंबेंसी एडवांटेज
कांग्रेस पार्टी बोम्मई सरकार के ख़िलाफ़ जनता के क्रोध को अच्छी तरह से अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल किया.

कन्नड़ में प्रकाशित राज्य के सबसे प्रमुख अख़बार 'विजय कर्नाटक' की हेडलाइन है कि जनता के क्रोध ने बीजेपी को सत्ता से बाहर किया.

3- लोकल मुद्दों को उजागर करना

प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी चुनावी रैलियों में स्थानीय बीजेपी सरकार की बजाय केंद्र सरकार की उपलब्धियां अधिक गिनाईं.

दूसरी तरफ़ कांग्रेस पार्टी ने न केवल स्थानीय नेताओं को महत्व दिया बल्कि लोकल मुद्दों को ही चुनावी मुद्दे बनाए.

अब नंदिनी दूध बनाम अमूल दूध का मामला ही ले लिया जाए. जैसे ही अमूल ने एलान किया कि वो राज्य में ऑनलाइन बिक्री करने के लिए मैदान में आ रहा है इसे कांग्रेस लोकल बनाम बाहरी कंपनी मुद्दे के रूप में पेश करने में कामयाब रही.

डॉक्टर दत्ता कहते हैं, "मेरा मानना है कि नंदिनी-अमूल विवाद को कांग्रेस ने इसे कामयाबी से जताने की कोशिश की कि नंदिनी जो एक स्थानीय कंपनी है और बीजेपी अमूल को लाकर इसे ख़त्म करने की कोशिश कर रही है."

4- आर्थिक मामलों पर फोकस रखना
कांग्रेस पार्टी ने महंगाई और बेरोज़गारी जैसे मुद्दों को अपने चुनावी अभियान में भारी जगह दी और बीजेपी द्वारा 'बजरंग दल और बजरंग बली" जैसे मुद्दे का सही तरीक़े से मुकबला किया.

इसी के इर्दगिर्द अपने प्रभावी प्रचार के कारण पार्टी आम लोगों से जुड़ी और उनका वोट हासिल किया.



5- भारत जोड़ो यात्रा ने पार्टी वर्कर्स में जोश भरा
राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' जनवरी में ख़त्म हुई लेकिन इसने जो पार्टी के कार्यकर्ताओं में उत्साह और जोश पैदा किया वो मई में हुए चुनाव में काम आया.

विश्लेषक मानते हैं कि 'भारत जोड़ो यात्रा' ने पार्टी में एक नई जान फूंक दी और उसका लाभ उसे चुनाव में हुआ.


6- महिलाओं पर ख़ास फ़ोकस
कांग्रेस ने ग़रीब और ग्रामीण महिलाओं को लुभाने के लिए ज़मीनी सतह पर काम किया. पार्टी कुछ ऐसी योजनाएं लेकर आई जिससे अधिक फ़ायदा महिलाओं को पहुंचे, जैसे कि प्रत्येक घर की महिला मुखिया को 2,000 रुपये प्रति माह देने का वादा.

कांग्रेस ने अफने चुनावी वादों में सभी घरों को 200 यूनिट मुफ्त बिजली देने की पेशकश भी की.

जहां ग़रीबी रेखा से नीचे गुज़र-बसर करने वाले परिवार सार्वजनिक वितरण योजना (पीडीएस) के तहत चार किलो चावल भी मुफ़्त पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस ने प्रति व्यक्ति 10 किलो मुफ़्त चावल देने का वादा किया है.

ये सभी आश्वासन निश्चित रूप से मतदाताओं के लिए आकर्षक लग रहे थे, ख़ासकर उन महिलाओं के लिए जो एलपीजी की क़ीमतों में बढ़ोतरी के साथ परिवार चलाने के लिए संघर्ष कर रही हैं.






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