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Chhattisgarh : मतलबिया मनखेमन से भरे हे दुनिया !



ऊंटपटांग जुवाब देवइया अउ अपन मतलब सधइया मनखेमन के कोनो कमी नइये। कतकोन जवान लइका अपन दाई-ददा ल चिल्ला के कहिथे- तुमन मोला जनम देके कोनो अहसान करे हव। जनम देय हव त हमन जइसे तुमन ल नचाबो, वोइसे नाचे बर परही।

(News Credit by Patrika)

मितान! परन दिन एकझन भिखमंगा ह मोला मोर अउकात बता दिस। जब मेहा वोला एक रुपिया देंव, त वोहा बोलिस- दिखथस त पढ़े-लिखे होबे, फेर अकल थोरको नइये। जानत नइअस का, रुपिया के अब दू कउड़ी के कीमत नइ रइ गे हे। तोरे जइसे यदि सब मोला एकेच रुपिया देय बर धर लिहीं त पांच कोरी मनखे ले भीख मांगे के बाद घलो मेहा बने होटल म खाना नइ खा पाऊं!

मेहा कहेंव- तेहा सरकार के वो बिग्यापन ल खच्चित देखे होबे, मंतरीमन के वो गोठ ल घलो सुने होबे के ‘भूख’ अब इतिहास बन जही। याने के अवइया समे म आपमन जइसे मनखेमन इतिहास बन जहू। सरकार के किरपा ले सबो भूख मरइया मनखेमन ‘भूतकाल’ म चल दिहीं।

भिखमंगा ह मोर एक रुपिया ल फेंक के बोलिस- होटल ले गोंदली गायब होगे हे। दार ह निच्चट पनियर मिलथे। काजू-बादाम के भाव तो फिङ्क्षलग म टंंगावत हे। हमर जइसे भिखमंगा कुपोसन के सिकार होवत हन। तुंहर जइसे कडक़ा एक रुपिया फेंकत रइहीं त हमर जइसे भिखमंगा सस्ता सरकारी रासन कइसे बिसा पाबोन? आज ‘रुपिया’ ह चुम्मुक ले ‘डॉलर’ के गिरफ्त म हे।

सरकार ह मोटरगाड़ी के बिकरी अउ सेयर मारकेट ल देखके खुस होथे। वोहा भिखमंगामन के संख्या ल नइ देखय। वोहा फुग्गा म हवा तो भरथे, फेर वोकर छेदा ल धियान नइ देवय। जउन अमरीका के भरोसा रहिथे, अमरीकेच ह वोला नंगरा करथे।

मोला लागिस वोहा थोरकिन जादा बोलत हे। सरकार के निंदा करई ह तो ठीक हे, फेर देस के सुभिमान उप्पर अंगरी उठइया ल जुवाब तो देय बर चाही। मेहा तुरते सौ रुपिया के नोट थमायेंव त वोहा ‘छप्पन भोग के थारी’ मिले कस खुस होगे।

वोहा बोलिस, साहेब! मेहा तो ‘काली’ के बात करत रहेंव। ‘आज’ तो रुपिया ह ‘मेटरो टेरन’ कस सरपट दउड़त हे। देस के हाल सुधरत हे। नोटबंदी के मार ले घलो उबर गे हे।

मेहा कहेंव- सिरीमान भिखमंगा जी, तेहा तो नेतामन ल घलो पीछू छोड़ देच। सौ रुपिया मिलचेत अइसे रंग बदलेच के ‘टेटका’ ल घलो सरम आ जही।

वोहा बोलिस- साहेब! का करंव। मोर ‘पीये’ के समे रिहिस अउ खिंसा एकदम खाली रहिस। ये सब नइ कहितेंव त आपमन अपन खिंसा ले सौ रुपिया निकाल के कइसे देतेव। अतका कहिके वोहा देसी दारू भट्ठी डहर चलते बनिस।

सिरतोन! ऊंटपटांग जुवाब देवइया अउ अपन मतलब सधइया मनखेमन के कोनो कमी नइये। कतकोन जवान लइका अपन दाई-ददा ल चिल्ला के कहिथें- तुमन मोला जनम देके कोनो अहसान नइ करे हव। जनम देय हव त हमन जइसे तुमन ल नचाबो, वोइसे नाचे बर परही। कतकोन नौकर अपन मालिक ल अइसे जुवाब देथे के झन पूछ। मेहा तोर नौकरी करत हंव, तेला अपन भाग जान। नौकरी करके मेहा तोर ऊपर अहसान करत हंव, तेहा नौकरी देके अहसास नइ करत हस। एक खोजहूं त दस नौकरी मिल जही। बड़े आय हस मालिक बनइया।

जब घर-परिवार होवय या समाज-सरकार, सबो डहर ‘जोंक’ कस लहू पियत, सुवारथ साधत, मतलब निकालत लोगन दिखथें, त अउ का-कहिबे।

 

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