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Diwali Puja Vidhi : वैदिक मंत्रों के साथ दिवाली पूजा विधि , ऐसे करें मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा, धन - धान्य, सुख - समृद्धी हमेशा बनी रहेगी

 



सनातन धर्म में दीपावली का विशेष महत्व है। आज दीपावली है। पर्व का उल्लास दीपो की रोशनी और पटाखों की गूंज में झलकेगा, मगर उससे पहले हर घर में होगा लक्ष्मी पूजन।
यह पर्व हर वर्ष कार्तिक अमावस्या तिथि पर मनाया जाता है। इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी की उपासना की जाती है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि चिरकाल में समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक अमावस्या तिथि पर मां लक्ष्मी अवतरित हुई थीं। इस उपलक्ष्य पर हर वर्ष कार्तिक अमावस्या के दिन दीवाली मनाई जाती है। वहीं, त्रेता युग में भगवान श्रीराम के 14 वर्षों के वनवास के बाद घर लौटने की खुशी में अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर दीवाली मनाई थी। तत्कालीन समय से हर वर्ष दीवाली का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर धन की देवी मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है। साथ ही दीप जलाए जाते हैं। धार्मिक मत है कि मां लक्ष्मी की पूजा (Maa Laxmi Puja Vidhi) करने से सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। इस शुभ अवसर पर झोल्टूराम लेकर आया है सारी जानकारी।

दीवाली पूजा मुहूर्त (Maa Laxmi Pujan Shubh Muhurat)
वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर को दोपहर 03 बजकर 52 मिनट पर शुरू होगी और 01 नवंबर को संध्याकाल 06 बजकर 16 मिनट पर समाप्त होगी। ज्योतिषीय गणना के अनुसार, 31 अक्टूबर को दीवाली मनाई जाएगी। 31 अक्टूबर को लक्ष्मी पूजा के लिए शुभ समय संध्याकाल 05 बजकर 36 मिनट से लेकर रात 08 बजकर 51 मिनट तक है। इस समय में धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा कर सकते हैं।

पूजन सामाग्री
दिवाली पूजन से पहले रखें ये सामानदिवाली पूजन शुरु करने से पहले आपको अपने पास फूल, पांच सुपारी, लौंग, पान के पत्ते, घी,कलावा, रोली, सिंदूर, एक नारियल, अक्षत, लाल वस्त्र , आम का पल्लव, कलश, समिधा, हवन कुण्ड, कमल गट्टे, पंचामृत, हवन सामग्री, मिठाईयां, पूजा में बैठने हेतु आसन, हल्दी, फल, बताशे, दीपक, रूई, आरती की थाली, कुशा, पूजा में बैठने हेतु आसन, हल्दी, अगरबत्ती, रक्त चंदनद, श्रीखंड चंदन, पांच तरह की मिठाई, कुमकुम, इत्र और आरती की थाली।

दिवाली पूजन से पहले करें ये काम
दिवाली की पूजा आरंभ करने से पहले पूजा के स्थान पर रंगोली बनाएं।
इसके बाद एक लकड़ी की चौकी स्थापित करें और उसपर लाल रंग का कपड़ा बिछा दें।
इसके बाद जहां माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करनी है वहां पर चावल रखें। फिर गणेशजी और माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें।
इस दिन माता लक्ष्मी के साथ मां काली और धन के देवता कुबेर की पूजा भी की जाती है। इसलिए इनकी मूर्ति यदि आपके पास हो तो इनकी मूर्ती की भी स्थापना करें।
साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भगवान विष्णु के बिना अधूरी मानी जाती है। इसलिए उनकी तस्वीर भी स्थापित करें। माता लक्ष्मी के दाई तऱफ गणेशजी और बाई करफ विष्णु भगवान की प्रतिमा स्थापित करें।

दिवाली पूजन की विधि
दिवाली की पूजा शुरु करने से पहले “ओम अपवित्र: पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:॥” इस मंत्र का जप करें। फिर पुष्प से अपने ऊपर पानी में गंगाजल डालकर छींटे लगाएं।
इसके बाद अपने आसन को शुद्ध करें और आसन पर तिलक लगाएं। तिलक लगाते समय ओम पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता। त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥ मंत्र का जप करें।
फिर पूजा का संकल्प लें और संकल्प लेने के लिए अपने सीधे हाछ में पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, मिठाई, मेवा, नारियल आदि सभी सामान थोड़ी थोड़ी मात्रा में लेकर ओम विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2070 तमेऽब्दे पिंगल नाम संवत्सरे दक्षिणायने हेमंत ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावस तिथौ रविवासरे हस्त नक्षत्रे आयुष्मान योगे चतुष्पद करणादिसत्सुशुभे योग (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया– श्रुतिस्मृत्यो- क्तफलप्राप्तर्थं— निमित्त महागणपति नवग्रहप्रणव सहितं कुलदेवतानां पूजनसहितं स्थिर लक्ष्मी महालक्ष्मी देवी पूजन निमित्तं एतत्सर्वं शुभ-पूजोपचारविधि सम्पादयिष्ये। इसका जप करें।
पूजा के लिए आपने जो कलश स्थापित किया है उस पर सबसे पहले आप के पंच पल्लव रखें। कलश में सुपारी, दूर्वा, अक्षत, सिक्का जल में डाल दें। इसके बाद एक लाल कपड़े में नारियल को बांधकर कलश के ऊपर स्थापित कर दें। इस दौरान ओ३म् त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:। (अस्मिन कलशे वरुणं सांग सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि, ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥) मंत्र का जप करें।
कलश स्थापना के बाद सबसे पहले गणेशजी का पूजन करें। सबसे पहले गणेश जी का ध्यान करते हुए एक फूल अपने हाथ में रख लें और गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्। आवाहन मंत्र- हाथ में अक्षत लेकर बोलें - ओम गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ।। मंत्र का जप करते हुए पुष्प गणेशजी को आर्पित कर दें।


दिवाली गणेशजी पूजन विधि
इसके बाद गणेश का पंचामृत से स्नान कराएं स्नान कराते समय एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ऊं गं गणपतये नम:। इस मंत्र से चंदन लगाएं इदम् रक्त चंदनम् लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:, इसके बाद- इदम् श्रीखंड चंदनम् बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं। अब सिन्दूर लगाएं “इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ओम गं गणपतये नम:। मंत्र का जप करें और फिर गणेशजी को वस्त्र अर्पित करें।
बाकी सभी देवताओं की पूजा भी आपको ऐसा ही करनी है।


दिवाली लक्ष्मी पूजन विधि
लक्ष्मी का ध्यान करते हुए एक पुष्प और कुछ अक्षत हाथ में रखें और ओम या सा पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी। गम्भीरावर्त-नाभिः, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।। लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः। ज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः। नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।। मंत्र का जप करें। फिर पुष्प लक्ष्मी जी को अर्पित कर दें।
गणेशजी की तरह माता लक्ष्मी का भी पंचामृत से स्नान कराएं। ओम भूर्भुवः स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ, एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।” प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं: ओम मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।। ओम लक्ष्म्यै नमः।। इदं रक्त चंदनम् लेपनम् से रक्त चंदन लगाएं। इदं सिन्दूराभरणं से सिन्दूर लगाएं। ‘ओम मन्दार-पारिजाताद्यैः, अनेकैः कुसुमैः शुभैः। पूजयामि शिवे, भक्तया, कमलायै नमो नमः।। ओम लक्ष्म्यै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।’  इस मंत्र का जप करके माता को वस्त्र अर्पित करें।
फिर माता लक्ष्मी को थोड़ा थोड़ा अक्षत अर्पित करें और ओम चपलायै नम: पादौ पूजयामि ऊं चंचलायै नम: जानूं पूजयामि, ऊं कमलायै नम: कटि पूजयामि, ऊं कात्यायिन्यै नम: नाभि पूजयामि, ओम जगन्मातरे नम: जठरं पूजयामि, ऊं विश्ववल्लभायै नम: वक्षस्थल पूजयामि, ऊं कमलवासिन्यै नम: भुजौ पूजयामि, ऊं कमल पत्राक्ष्य नम: नेत्रत्रयं पूजयामि, ऊं श्रियै नम: शिरं: पूजयामि। मंत्र का जप करें। इसका जप करते हुए ही आपको अक्षत थोड़े थोड़े करके छोड़ने हैं।
अंत में माता लक्ष्मी की पूजा भगवान गणेश की आरती करने के बाद प्रसाद बांटें।

भोग लगाने का मंत्र
सबसे पहले भोग माता लक्ष्मी और भगवान गणेश को लगाएं। इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि” मंत्र से नैवैद्य अर्पित करें। मिठाई अर्पित करने के लिए मंत्र: “इदं शर्करा घृत समायुक्तं नैवेद्यं ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि” बालें। प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन कराएं। इदं आचमनयं ऊं महालक्ष्मियै नम:। इस दौरान इस मंत्र का जप करें। फिर परिवार के सभी लोगों को प्रसाद अर्पित कर दें।


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