Ad Code

Responsive Advertisement

GODI - MEDIA की चुप्पी के बीच मीम्स, चुटकुले अडानी और पुलवामा जैसे मुद्दे जनता तक पहुंचा रहे हैं !


(ऊपर बाएं से) लोकसभा में अडानी-मोदी की तस्वीर दिखाते राहुल गांधी, द वायर के इंटरव्यू में सत्यपाल मलिक और सोशल मीडिया पर अडानी-मोदी को लेकर आए कुछ मीम्स और कार्टून. (साभार: सोशल मीडिया)

News Credit By the wire

‘मुख्यधारा’ का मीडिया जहां चुनिंदा मसलों पर चुप्पी का रास्ता अपना रहे हैं, वहीं सोशल मीडिया यह काम मुखरता से कर रहा है. जिन जटिल और महत्वपूर्ण मुद्दों को बड़े मीडिया संस्थान नज़रअंदाज़ कर देते हैं, वो अब मीम्स, वीडियो क्लिप्स की शक्ल में सरल और चुटीले स्वरूप में व्यापक दर्शकों तक पहुंच रहे हैं.

1980 के दशक के अंत में जब वीपी सिंह देशभर में समर्थन जुटाने के लिए यात्राएं करते थे, तब लोगों से बात करते हुए वे कागज का एक टुकड़ा हाथ में लिए रहते थे, वे पूछते, ‘क्या आप जानते हैं कि यह क्या है? यह गुप्त एकाउंट नंबर है, जिसमें बोफोर्स कमीशन का पैसा रखा गया है.’ भीड़ इसे काफी पसंद किया करती थी.

बोफोर्स कांड सामने आने और गांधी के गले की हड्डी साबित होने के बाद वीपी सिंह ने पहले राजीव गांधी सरकार में रक्षा मंत्री पद और फिर जनता दल बनाने के लिए कांग्रेस पार्टी को छोड़ा. इस तरह, उन्होंने गांधी, जिन्होंने इसे अनदेखा किया या संभवतः स्वयं भ्रष्ट थे, के उलट अपनी एक अति-ईमानदार नेता होने की छवि बनाई, जो भ्रष्टाचार को पचा नहीं सकता था.

उन दिनों जो कुछ कहा जाता था, उसमें से अधिकांश संकेत और सुझाव होते थे, बहुत कम या अस्पष्ट ठोस सबूत थे. कुछ नाम स्वतंत्र रूप से उछाले गए- हिंदुजा, विन चड्ढा, क्वात्रोची और खुद राजीव गांधी. मिस्टर क्लीन के नाम से मशहूर गांधी अब गंदे दिखने लगे थे- वीपी सिंह नए मिस्टर क्लीनर थे.

किसी ने भी उस कागज के टुकड़े को कभी करीब से नहीं देखा, और सीक्रेट एकाउंट नंबर की बात तो छोड़िए, कोई नहीं जानता था कि इसमें कोई संख्या लिखी भी थी या नहीं. लेकिन संदेश चला गया था. इसी तरह की एक और जटिल कहानी- भारतीय सेना द्वारा स्वीडन से 155 होवित्जर तोपों की खरीद- को वीपी सिंह आम मतदाता के स्तर पर ले आए थे.

अब फिर से कुछ ऐसा ही हो रहा है, सिवाय इसके कि इस डिजिटल युग में कागज के टुकड़े बेमानी हैं. सोशल मीडिया ने न केवल नेताओं को बल्कि अन्य सभी लोगों को भी सूचना, तथ्यात्मक या अन्य सामग्री फैलाने के कई तरह के तरीके दे दिए हैं.

अडानी समूह के कामकाज पर सवाल उठाने वाली हिंडनबर्ग रिपोर्ट जब जारी की गई थी, तो यह सब बहुत अधिक तकनीकी माना गया. अडानी के शेयर गिरे और गिरते रहे, लेकिन ‘आम आदमी’ पर शायद ही कोई असर पड़ा. इसका प्रभाव व्यापारिक समुदाय के भीतर ही बना रहा.

तब विपक्ष ने सरकार से जवाब मांगना शुरू किया और राहुल गांधी, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर उद्योगपतियों के करीबी होने का आरोप लगाते रहे थे, ने मोर्चा खोल दिया. उन्होंने संसद में सवाल उठाए और अडानी के विमान में आराम करते हुए मोदी की एक पुरानी तस्वीर दिखाई. संसद की कार्यवाही का यह हिस्सा टीवी चैनलों पर नहीं दिखाया गया और उसे रिकॉर्ड्स से भी हटा दिया गया. इसके कुछ समय बाद सूरत की अदालत का फैसला आया और राहुल गांधी को संसद से निष्कासित कर दिया गया. विपक्ष और ज्यादा हमलावर हो गया.

तब तक एक दिलचस्प बात हुई – अडानी की कहानी, जो अब तक बहुत जगह तक नहीं पहुंची थी और जिसमें स्टॉक मार्केट के जटिल शब्दजाल थे, वो आम नागरिक की समझ में आनी शुरू हुई. इस बार माध्यम डिजिटल था- ट्वीट्स, मीम्स और गाने. और यह सब वायरल होने लगा.

आज, अडानी-मोदी कनेक्शन दूर-दूर तक पहुंच रहा है, विपक्ष के कारण नहीं (अब भी कई पार्टियां इसे नहीं उठा रही हैं), लेकिन पॉपुलर कल्चर (या पॉप कल्चर) के चलते, जहां संदेश कहीं ज्यादा स्पष्ट और सीधा होता है और इसलिए यह अधिक ताकतवर माध्यम हैं.

किसी सर्च इंजन में या यूट्यूब पर अडानी मोदी मीम्स टाइप करें और अनगिनत छोटी-छोटी क्लिप्स सामने आती हैं – कुछ तटस्थ, कुछ औसत, लेकिन कई काफी मज़ेदार और तीखी हैं. गाने? इस लिंक पर जाकर देखें, जो लोकप्रिय नाटू-नाटू से मेल खाता है. वहां बहुत कुछ है, और कुछ यूट्यूब पर न होकर किसी और माध्यम पर हो सकते हैं. और वॉट्सऐप पर किस तरह के चुटकुले और टिप्पणियां यहां से वहां जा रहे हैं, यह कहने की तो जरूरत ही नहीं है. यह सारी जानकारी सारगर्भित और आसानी से समझने योग्य रूप में पेश की जाती है, जो किसी मुद्दे का सार दे देती है.

सोशल मीडिया पर भाजपा का प्रभुत्व रहा है, जिसने सबसे पहले इसकी ताकत को आज़माया था- लेकिन अब यह अकेली नहीं है, क्योंकि अलग-अलग क्रिएटर, कुछ ऐसे भी हैं जिनका किसी पार्टी से कोई नाता नहीं है, वे महत्वपूर्ण रिपोर्ट्स, मुद्दों पर टिप्पणी कर रहे हैं और साथ ही इससे हास्य भी पैदा कर रहे हैं. इन सबके बीच ‘मोदानी’ एक वैध शब्द बन गया है.

ऐसा नहीं है कि विपक्षी दलों की जरूरत नहीं है – वे जरूरी हैं, क्योंकि उन्हें ही सवाल पूछने हैं और उनके ही अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों की ओर से बोलने की जरूरत है. कांग्रेस ने अपने हमलों पर ध्यान केंद्रित किया है, अन्यों ने ऐसा बहुत कम किया है, लेकिन वे इस बारे में जितने अधिक जवाब मांगते हैं, भाजपा उतनी ही रक्षात्मक हो जाती है. और ऐसा नहीं है कि इस विषय पर प्रधानमंत्री की चुप्पी पर किसी का ध्यान नहीं गया हो.

यह मसला 2002 की गुजरात हिंसा को सामने लाने वाली बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पर रोक के फौरन बाद उठा था, फिर बीबीसी पर छापा पड़ा- इन सबके बीच नरेंद्र मोदी पूरी तरह से ‘मौन व्रत’ धारण किए दिखे, जो अन्यथा दुनिया के लगभग हर विषय पर काफी मुखर रहते हैं. इस समय यह तथ्य सामने आया कि वे कुछ विषयों पर खामोशी अख्तियार करना ही बेहतर समझते हैं.

कांग्रेस ने उनकी कमजोर नब्ज जान ली है और वह इसे आसानी जाने नहीं देगी. इसके निरंतर अभियान, मीम्स, चुटकुलों और गीतों की बदौलत आम आदमी भी यह समझने लगा है कि ये ऐसे सवाल हैं जिनका मोदी को जवाब देना चाहिए.

द वायर को दिए साक्षात्कार में सत्यपाल मलिक ने भविष्यवाणी की है कि अडानी मसला नरेंद्र मोदी को भारी पड़ेगा और वो सही लगते हैं. मलिक ने कहा कि यह मुद्दा गांवों तक पहुंच चुका है और अगर प्रधानमंत्री अब भी अडानी से हाथ नहीं छुड़ाते हैं, तो ये मुद्दा भाजपा को ले डूबेगा.

मलिक ने इसी बातचीत में पुलवामा हमले को लेकर चौंकाने वाले खुलासे किए. उन्होंने बताया कि कैसे उन्हें ‘चुप रहने‘ को कहा गया, कैसे उन्होंने भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया तो मोदी ने इसे नजरअंदाज कर दिया; यह सब अब सोशल मीडिया पर अलग-अलग आसान, चुटीले स्वरूपों में सामने आ रहा है. व्यंग्यकारों ने तो इस पर काम भी शुरू कर दिया है. ‘मुख्यधारा’ के मीडिया ने इस बारे में चुप्पी बनाए रखी है और सोशल मीडिया उसकी खाली छोड़ी गई जगह को भर रहा है.

क्या मलिक, जो खुद उसी पार्टी से आते हैं, ने उस बात को शब्द दे दिए हैं, जो भाजपा के अंदर कई सोच रहे थे? यह भी देखने लायक बात है कि पार्टी प्रवक्ता मोदी के साथ-साथ अडानी के बचाव में खासे मुखर हैं, लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता कूटनीतिक तरीके से चुप हैं. शायद उन्होंने भी मीम्स देख लिए हों और इनके मायने समझ लिए हों- कि आम नागरिक अब जागरूक हो रहा है और वो अडानी, पुलवामा समेत कई अन्य मुद्दों पर सवाल पूछेगा. उनके चहेते नेता के रंग अब फीके पड़ने लगे हैं.

Ad code

1 / 7
2 / 7
3 / 7
4 / 7
5 / 7
6 / 7
7 / 7

ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer ad inner footer

Ad Code

Responsive Advertisement