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पिथौरा : पति-पत्नी के विवाद में मासूम पीस रहा था, घरेलू हिंसा का विवाद लोक अदालत में मिनटों में निबटाया गया , एक टूटता हुआ परिवार हंसते मुस्कुराते नई जिंदगी के लिए निकल पड़े

 


पति-पत्नी के विवाद में मासूम पीस रहा था, घरेलू हिंसा का विवाद लोक अदालत में मिनटों में निबटाया गया।


पिथौरा में आयोजित नेशनल लोक अदालत में अनेक प्रकरणों का राजीनामा से हुआ निबटारा।

एक टूटता हुआ परिवार हंसते मुस्कुराते नई जिंदगी के लिए निकल पड़े।

रूपानंद सोई 94242-43631 

पिथौरा- मामूली बातों को लेकर पति-पत्नी के मध्य तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई थी, वाद विवाद चरम सीमा में पहुंचने के कारण पत्नी अपने मायके में आकर रहने लगी थी। दोनो का एक छोटा बच्चा भी था । आपसी सुलह की गुंजाइस समाप्त हो चुकी थी । लिहाजा महिला की ओर से घरेलू हिंसा का मामला पिथौरा के न्यायालय में प्रस्तुत किया था । न्यायालय की सूचना पर जब पति उपस्थित हुआ तो विधिक सेवा प्राधिकरण की ओर से दोनों को निःशुल्क अधिवक्ता उपलब्ध कराते हुए न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी पिथौरा प्रतीक टेम्भुरकर ने दोनों से आयोजित नेशनल लोक अदालत में पृथक-पृथक चर्चा करते हुए दोनों के परिवार वालों को बुलवाया और छोटे बच्चे के भविष्य तथा परिवार के महत्व को समझाया जिससे दोनों परिवार सहमत होते हुए राजीनामा हेतु तैयार हो गए परिणाम स्वरूप एक टूटता हुआ परिवार हंसते मुस्कुराते नई जिंदगी के लिए निकल पड़े ।

इसी तरह से सामान्य बात को लेकर एक बुजुर्ग व्यक्ति के द्वारा मोहल्ले के कुछ नवयुवकों को सलाह दिए जाने पर युवक, बुजुर्ग के ऊपर के आक्रोशित हो गए और उन्होंने बुजुर्ग के साथ दुर्व्यवहार किया । बात बढ़ते हुए गाली गलौज तक जा पहुँची, लिहाजा बुजुर्ग व्यक्ति ने युवकों के विरुद्ध थाना में रिपोर्ट लिखवाया था । उक्त प्रकरण पिथौरा न्यायालय में विगत 3 सालों से चल रहा था । लोक अदालत में प्रार्थी बुजुर्ग व्यक्ति सहित युवकों को बुलाकर न्यायिक मजिस्ट्रेट के द्वारा सलाह देते हुए बुजुर्ग के सम्मान करने की बात पर आरोपीगण तैयार हो गए और बुजुर्ग से माफी मांगने पर 3 वर्ष पुराना मामला मिनटों में समाप्त हो गया ।


क्या होता है लोक अदालत-
ज्ञात हो कि लोक अदालत त्वरित और सस्ते न्याय के लिए वैकल्पिक समाधान या युक्ति प्रदान करती है । मुख्य धारा कानूनी प्रणाली के लिए एक पूरक प्रदान करने के लिए औपचारिक व्यवस्था से हट कर अपने मामलों को निपटाने के लिए जनता को प्रोत्साहित करने के लिए, न्याय वितरण प्रणाली में भाग लेने के लिए जनता को सशक्त बनाने का कार्य करती है ।

लोक अदालत का निर्णय अंतिम होता है-
लोक अदालत को विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत वैधानिक दर्जा दिया गया है । इस अधिनियम के तहत, लोक अदालत द्वारा दिए गए एक निर्णय को एक दीवानी अदालत का आदेश माना जाता है और सभी पक्षों पर अंतिम और बाध्यकारी होता है और कोई अपील नहीं होती है ।

अनेक मामलों का हुआ निराकरण-
आज आयोजित नेशनल लोक अदालत में पिथौरा न्यायालय में 16 दाण्डिक प्रकृति के, 02 सिविल प्रकृति के, 01 चेक बाउंस का तथा 200 समरी मामले निबटाये गए ।

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