टीएस सिंहदेव डिप्टी सीएम, अंबिकापुर क्यों हारे -
लखनपुर ब्लॉक से प्रत्याशी उतारा भाजपा ने, लंंबे समय से उस क्षेत्र की जनता की मांग थी की इसी क्षेत्र से प्रत्याशी उतारा जाय यहां से कांग्रेस को हमेशा बढत मिलती थी ।
ताम्रध्वज साहू , गृहमंत्री , दुर्ग ग्रामीण क्यों हारे -
रिश्तेदारों पर आरोप है कि ट्रांसफर, पोस्टिंग और दुर्ग क्षेत्र में उनके लोगों ने अच्छा व्यवहार नहीं किया इसकी नारजगी थी ।
रविन्द्र मंत्री ,पंचायत मंत्री , साजा क्यों हारे -
बिरनपुर हिंसा का असर दिखा , सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हुआ और आठ बार के विधायक और दिग्गज हार गये ।
जय सिंह अग्रवाल , राजस्व मंत्री, कोरबा क्यों हारे -
करीबी लोगों पर भूमाफिया होने का आरोप लगता रहा । लखनलाल देवांगन सरल सहज व्यक्तित्व ।
रूद्र कुमार गूरू , लोक स्वास्थ्य यान्त्रिकी एवं ग्रामोद्योग मंत्री, नवागढ क्यों हारे -
तीसरी बार सीट बदली सामाजिक समीकरण के तहत टिकट मिलती रही । इस बार भाजपा ने दयाल दास बघेल को टिकट दी ।
मोहन मरकाम , स्कूल शिक्षा मंत्री, कोण्डाडागांव क्यों हारे -
क्षेत्र में सक्रियता कम रही , गूटबाजी का भी शिकार रहे ।
अमरजीत भगत , खाद्य मंत्री , सीतापुर क्यों हारे -
क्षेत्रवासियों का सेना के जवान के प्रति सहनुभूति । सेना के टिप्पणी पर लोगों की नारजगी ।
शिव डहरिया , नगरिय प्रशासन मंत्री , आरंग क्यों हारे -
क्षेत्र से भाजपा ने धर्मअगुरू खुशवंत दास को टिकट दिया । सतनामी समाज का बाहुल्य क्षेत्र ।
मोहम्मद अकबर , परिवहन मंत्री , कर्वधा क्यों हारे -
सांप्रदायिक ध्रूविकरण हुआ इसका फायदा भाजपा को मिला ।
1. टीएस सिंहदेव एक भी सीट नहीं ला पाए
पिछली बार मुख्यमंत्री का चेहरा रहे टीएस सिंहदेव सरगुजा से 14 की 14 सीटें जीतकर ले आए। उन्हें सीएम नहीं बनाया गया। सत्ता से संघर्ष में पार्टी को नुकसान हुआ। काम नहीं हुआ। इस बार आलम ये है कि जनता ने पूरी 14 की 14 सीटें इस बार भाजपा को दे दी। बिल्कुल नए प्रत्याशी राजेश अग्रवाल ने दिग्गज टीएस सिंहदेव को हरा दिया।
2. अमरजीत भगत को सैनिक पर टिप्पणी भारी पड़ी
20 साल के विधायक और मंत्री अमरजीत सिंह भगत को सेना से इस्तीफा देकर चुनाव लड़ रहे रामकुमार टोप्पो ने हरा दिया। अमरजीत भगत ने सेना पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि सेना के लोग बार्डर पर ठीक लगते हैं, राजनीति में उनका कोई काम नहीं। क्षेत्र में इसे सेना के अपमान की तरह भी देखा गया। आखिरकार उन्हें जनता ने हरा दिया और सेना के जवान को जिता दिया।
3. मोहम्मद अकबर के खिलाफ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का असर दिखा
कवर्धा में भी दिग्गज मंत्री मोहम्मद अकबर के खिलाफ भाजपा ने नया प्रत्याशी विजय शर्मा दिया। विजय शर्मा ने कवर्धा में सांप्रदायिक तनाव के दौरान भाजपा और हिन्दुत्व का झंडा बुलंद किया था। सरल और सहज होने के बावजूद मोहम्मद अकबर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के शिकार हुए।
4. रविंद्र चौबे भी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का शिकार
साजा के बिरनपुर में सांप्रदायिक हिंसा हुई। यहां हिंसा में मारे गए भुवनेश्वर साहू के पिता को भाजपा ने उतारा। यह निर्णय व्यक्तिगत रूप से अमित शाह का था। ये फैसला इतना सही साबित हुआ कि 8 बार के विधायक व दिग्गज मंत्री, जिनके पिता व माता भी विधायक रहीं, उन्हें हरा दिया। ईश्वर साहू फटी हुई चप्पल और फटे कपड़े पहनकर साइकिल में चुनाव प्रचार करते रहे और अपना दर्द बताते रहे। उनकी संवेदना लोगों तक पहुंची।
5. जयसिंह अग्रवाल का परसेप्शन उन्हें ले डूबा
कोरबा से मंत्री जयसिंह अग्रवाल के खिलाफ एक माहौल बन गया। भूमाफियाओं का उनके ईर्द-गिर्द होना उन्हें भारी पड़ा। अपनी ही सरकार से बहुत अच्छे रिश्ते भी नहीं थे। कहा जाता है कि प्रदेश की सबसे खर्चीली सीटों में इस बार कोरबा भी रही। उनके सामने भाजपा ने लखनलाल देवांगन को उतारा, जो सहर सरल और जमीनी नेता हैं। यहां लोगों ने सत्ता के अहंकार और सहजता के परसेप्शन पर वोट दिया।
6. ताम्रध्वज साहू पर रिश्तेदार भारी पड़े
बेहद सरल और सौम्य नेता ताम्रध्वज साहू अपने क्षेत्र में अपने रिश्तेदारों के कारण हार गए। गृहमंत्री वे थे, लेकिन उनके रिश्तेदारों पर ट्रांसफर पोस्टिंग और क्षेत्र में अतिवाद के आरोप के चलते लोगों ने ताम्रध्वज साहू को नकार दिया। दूसरा प्रदेश में साहू समाज एक तरफा भाजपा के साथ नजर आया। इसी कारण चंद्राकर समाज के प्रत्याशी ललित चंद्राकर को कांग्रेस के साहू के खिलाफ वोट मिले।
Credit Bhaskar
Social Plugin