Chhattisagarh Pola festival 2023 : किसानों के फसल बोने में योगदान देने वाले बैलों को सम्मान देने के लिए किसान अपने बैलों की पूजा-अर्चना करके छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का भोग देते हैं।
पोला पर्व भादो अमावस्या पर मनाया जाता है
बैलों की पूजा-अर्चना पोला पर्व पर होती है
किसान छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का भोग लगाते हैं
रायपुर ( सत्यानंद सोई ) Pola festival 2023 : किसानों के फसल बोने में योगदान देने वाले बैलों को सम्मान देने के लिए किसान अपने बैलों की पूजा-अर्चना करके छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का भोग लगाते हैं। भादो अमावस्या पर यह पर्व मनाया जाता है, इस साल यह पर्व 14 सितंबर को मनाया रहा है। इस पर्व पर जहां बच्चे मिट्टी का बैल दौड़ाने का खेल खेलेते हैं, वहीं बालिकाएं मिट्टी से बने रसोई में उपयोग में लाए जाने वाले बर्तनों से भोजन पकाने का खेल खेला करती हैं।
मिट्टी के बैल सज गए बाजार में
पोला पर्व पर बाजार में मिट्टी के बैल, मिट्टी के बर्तन बिकने के लिए सज चुके हैं। रायपुर समेत राज्य के सभी नगरो कस्बा एवं गांव-गांव के आम गलीयों में मिट्टी के बैलों की बिक्री होने लगी है। बच्चे इन मिट्टी के बैलों को लेकर अपने आसपास मुहल्ले के घरों में जाते हैं, उन घरवाले के द्वारा बच्चों को उपहार देकर विदा किया जाता है।
इस कारण मनाया जाता है पोला त्यौहार
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान विष्णु ने कृष्ण का अवतार लिया तो उनका जन्म जन्माष्टमी के दिन ही हुआ था। जब यह बात कंस को पता चली तो उसने कान्हा को मारने के लिए कई राक्षसों को भेजा। इन्हीं राक्षसों में से एक था पोलासुर. राक्षस पोलासुर का वध कान्हा ने अपने पराक्रम से किया था। पोला सुर का वध भाद्रपद की अमावस्या को कान्हा से हुआ था। इसी कारण इस दिन को पोला कहा जाने लगा। पोला त्यौहार के एक दिन भादो अमावस्या के दिन बैलों और गायों को बांधा नहीं जाता है उन्हें मुक्त कर दिया जाता है। उन्हें सजाया संवारा जाता है उन्हें सुंदर घंटियों, वाली, माला पहनाई जाती है. बैलों की पूजा की जाती है तथा प्रकृति के प्रति स्नेह एवं धन्यवाद को दर्शाता है. यह त्यौहार छत्तीसगढ, महाराष्ट्र समेत अन्य राज्यों में हर्ष एवं खुशी के साथ मनाया जाता है।
हर वर्ष बैलों का श्रृंगार, दौड़ प्रतियोगिता का होता है आयोजन
किसान इस पोला पर्व के एक दिन पहले बैलों के शरीर में हल्दी, उबटन, सरसों का तेल लगाकर मालिश करके स्नान कराते हैं । बैलों के सींग, खुर में माहुर, नेश पालिश लगाते हैं। गले में सोहई, घुंघरू, कौड़ी, घंटी वाली माला बांधकर श्रृंगार करते हैं । राजधानी रायपुर से सटा हुआ बीरगांव नगर निगम क्षेत्र अंतर्गत रावणभाठा मैदान में प्रत्येक वर्ष बडी धुमधाम से बैल दौड़, बैल श्रृंगार प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है ।
घर-घर बनाता हैं छत्तीसगढ़ी व्यंजन
किसान सभी अपने -अपने घरों में छत्तीसगढ़ी व्यंजन ठेठरी, खुरमी, गुड़-चीला, गुलगुल भजिया, अनरसा, सोहारी, चौसेला, बरा, मुरकू, भजिया, मूठिया, गुजिया, तसमई आदि व्यंजन बनाते है और घर में बैलों का पुजा अर्चना कर इन व्यंजनों का भोग लगाते हैं।
मिट्टी के खिलौने देवताओं को अर्पित करने की परंपरा
किसानों के बताऐ अनुसार इस दिन बच्चियां छत्तीसगढ़ के पारंपरिक बर्तन लाल रंग का चूह्ला, हंड़िया, कुरेड़ा, गंजी, टीन, कड़ाही, जाता, सील-लोहड़ा से खेल खेलेंगी। इन खिलौनों को देवी-देवताओं को अर्पित करने की परंपरा निभाएंगी। ग्रामीण इलाकों में अपने अपने गांव के सभी देवी देवताओं को मिट्टी के बैल चढ़ाने की परंपरा निभाते हैं।
ऐसी मान्यता है कि इस दिन अन्नमाता यानी फसलों में गर्भधारण होता है, यानी दानों में दूध भरता है। पोरा पटकने की रस्म ग्रामीण इलाकों में युवतियां गांव के बाहर मैदान अथवा चौराहों (जहां नंदी बैल या साहड़ा देव की प्रतिमा स्थापित रहती है) पर पोरा पटकने की रस्म निभाती हैं। युवतियां अपने घर से लाए गए एक-एक मिट्टी के खिलौने में कुछ अनाज भरकर पटककर फोड़ती हैं।
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