उत्सवों की धूम: आइए जानते है स्थानीय पर्व और उनके महत्व, सावन-भादो में होगी तीज-त्योहारों की बरसात
(News Credit by Patrika)
रायपुर. वैसे तो अभी पानी की वर्षा हो रही है, लेकिन छत्तीसगढ़ के मामले में पर्वों की बरसात कहना भी गलत नहीं होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रदेश में सावन और भादों के दौरान स्थानीय तीज-त्योहारों की भरमार रहती है। इसकी शुरुआत 28 जुलाई को हरेली से होने जा रही है।
महामाया मंदिर के पुजारी पं. मनोज शुक्ला बताते हैं कि छत्तीसगढ़ के ज्यादातर लोग खेती-किसानी से जुड़े हैं। ज्यादातर स्थानीय पर्व भी इसी पर आधारित हैं। जैसे हरेली में खेत के साथ कृषि उपकरणों की पूजा का विधान है। सावन-भादो में ज्यादातर त्योहार पड़ने की वजह ये है कि इस दौरान किसान खेती कार्यों में व्यस्त रहते हैं। ऐसे में अलग-अलग पर्वों के जरिए वे कृषि और इससे जुड़े उपरकरणों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं। एक अन्य कारण यह भी है कि चातुर्मास काल में लोग इधर-उधर जाने के बजाय अपने घरों में ही रहें। इसके चलते भी वर्षाकाल में सबसे ज्यादा तीज-त्योहार पड़ते हैं।
हरेली- 28 जुलाई
मुख्य रूप से यह पर्व किसान परिवारों में मनाया जाता है। इस दिन कृषि औजारों की पूजा करने के साथ घरों में गुरहा चीला बनाने की भी परंपरा है। ये चीला खेत को अर्पित करने के बाद घर और पास-पड़ोस के लोगों मे मिल बांटकर खाया जाता है।
बहुरा चौथ 15 अगस्त
ये पर्व सभी ममतामयी माताओं को समर्पित है। वैसे तो इस दिन श्रीकृष्ण और गो पूजा की विधान है, लेकिन छत्तीसगढ़ में इस दिन माताएं साथ मिलकर उस गाय की कथा सुनती-सुनाती हैं जिसने अपने बच्चे की जान बचाने के लिए खुद को शेर का चारा बना दिया था।
खमरछठ- 17 अगस्त
संतान की लंबी उम्र के लिए माताएं व्रत रखती हैं। घरों और मोहल्लों में इस दिन सगरी (मिट्टी का कुंआ) बनाई जाती है। संतान की लंबी उम्र के लिए माताएं इसमें जल भरती हैं। बच्चों को कपड़ों की पोटली (पोता) मारने का भी विधान है। ये छत्तीसगढ़ के बड़े पर्वों में से एक है।
पोरा- 27 अगस्त
वैसे तो यह खेती-किसानी को समर्पित पर्व है, लेकिन ग्रामीण बच्चों को पूरे साल इस दिन का इंतजार रहता है। इस दिन नंदिया बइला (मिट्टी के बैल) और चुक्की-पोरा (मिट्टी के बर्तन) की पूजा की जाती है। फिर लड़के नंदिया बइला दौड़ाते हैं और लड़कियां चुक्की-पोरा से खेलती हैं।
तीजा-30 अगस्त
छत्तीसगढ़ की महिलाओं को पूरे साल किसी दिन का इंतजार रहता है तो वो यही है। शादीशुदा बेटियां इस दिन अपने मायके आती हैं। रंग-बिरंगी साड़ियों का लेन-देन भी खूब होता है। ये पर्व उन बेटियों के लिए सबसे ज्यादा खुशी लेकर आता है जो ससुराल दूर होने की वजह से सालभर मायके नहीं जा पाती हैं।
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